देश आजाद हो गया लेकिन जिस तरह के हालात देश में देखे जा रहे है, उनसे लग रहा है कि हमारे समाज की सोच और अनुसूचित जाति के लोग अभी भी अछूत (Dalit) (Atrocities on Dalits) नामक जेल में कैद है. आज भी लोग एक दूसरे के स्पर्श से चीजों को अछूत मान लेते है. अगर कोई अनुसूचित (दलित) जाति का इंसान किसी बरतन को छू कर पानी पी लेता है तो ऊँची जाति वाले लोगों के लिए वो बरतन अछूत हो जाता है, अगर यह सच है तो ऊँची जाति वाले लोग इस छूत से कहाँ तक बचेंगे. यह हवा, पानी, मिट्टी सभी को कभी तो किसी निचली (दलित) जाति के इंसान ने छुआ होगा. तो क्या यह लोग साँस लेना बंद कर देंगे या फिर पानी पीना बंद कर देंगे.
खैर यह (Atrocities on Dalits) एक बीमारी है जो समय के साथ बढ़ती ही नजर आ रही है.दलित समाज के लोगों के साथ आज के आजाद भारत में भी भेदभाऊ (Atrocities on Dalits) और अन्याय किया जाता है. आज भी उन्हें नीच नजर से देखा जाता है. देश के लगभग सभी जगह दलितों पर हो रहे अत्याचारों (Atrocities on Dalits) की कहानी एक जैसी है, हाल ही में राजस्थान में इसका उदाहरण देखने को मिलता है, जहाँ एक राजपूत समाज के अद्यापक पर आरोप है कि उसने एक दलित बच्चे को इतना पीटा कि इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. उस बच्चे की गलती बस इतनी थी कि उसने अध्यापक की मटकी से पानी पी लिया. आज हम आपको डॉ. आंबेडकर के साथ हुए ऐसे ही हादसे के बारे में भी बताएँगे जो उनके साथ स्कूल में हुआ था और साथ में नजर डालेंगे देश में हो रहे दलितों पर अत्याचारों और दलित महिलाओं से हो रहे रैप के आंकड़ों पर….
दलित महिला से रैप के मामले में योगीराज में यूपी नंबर1 पर UP No.1 in Yogiraj in case of rape with Dalit woman
महिलाएं वंचित समुदाय से हों तो उनके साथ यौन हिंसा होने की आशंका ज़्यादा होती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 में देशभर में 2957 दलित (Dalit) महिलाओं का बलात्कार हुआ. ज़्यादा शर्मनाक बात ये है कि इनमें 871 पीड़ित वारदात के वक़्त नाबालिग़ थीं. सरल शब्दों में कहें तो हर रोज़ आठ दलित महिलाओं के साथ देश के किसी ना किसी हिस्से में बलात्कार हो रहा है.
एनसीआरबी के मुताबिक दलित (Dalit) समुदाय की सबसे ज़्यादा 526 महिलाएं उत्तर प्रदेश में शिकार हुईं.
मध्य प्रदेश में भी दलित महिलाएं बलात्कार की शिकार Dalit women also victims of rape in Madhya Pradesh
gonews की रिपोर्ट के अनुसार वहीं दूसरे नंबर पर आता है मध्य प्रदेश जहां 474 दलित (Dalit) महिलाएं बलात्कार की शिकार बनीं. इसी तरह राजस्थान में 385, महाराष्ट्र में 313 और हरियाणा में 171 दलित महिलाओं को बलात्कार का दंश झेलना पड़ा.
राजस्थान में दलित महिलाओं की स्थति ख़राब Poor condition of Dalit women in Rajasthan
अनुसूचित जाति (Dalit) की महिलाओं के साथ रेप की घटनाओं में 2018 की तुलना में 2020 में 17.31% की बढ़ोतरी हुई है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों की मानें तो केवल 2020 में दलितों के साथ अपराध के वहाँ 6000 से अधिक मामले आ चुके हैं। अभी तो ढाई महीने से भी अधिक हैं इस वर्ष को जाने को। इतना ही नहीं, इनमें से मात्र आधे में ही आरोपितों को सज़ा मिल सकी है। साल 2019 में 6,794 मामले दलितों पर अत्याचार के दर्ज हुए थे।
महिलाओं के साथ रेप के 38 फीसदी मामले पाए गए झूठ 38 percent cases of rape with women were found to be lies
राज्य के गृह विभाग के मुताबिक साल 2018 से 2020 तक 3 साल में एससी महिलाओं के साथ रेप के 1467 मुकदमे दर्ज हुए जिनमें 555 मुकदमे जांच में झूठे पाए गए. वहीं साल 2018 में एससी महिलाओं से रेप के 416 मुकदमे दर्ज हुए जिनमें से 161 झूठे पाए गए, 2019 में एससी महिलाओं से दुष्कर्म के 563 में से 214 और 2020 में 488 मामलों में से 180 मुकदमे झूठे पाए गए.
गुजरात में हर चौथे दिन दलित महिला से बलात्कार Dalit woman raped every fourth day in Gujarat
बीते दस सालों में अनुसूचित जाति की 814 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई है. इसी समयावधि में अनुसूचित जनजाति की 395 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई है.
2011 में गुजरात में अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ बलात्कार के 51 मामले दर्ज हुए थे. 2020 में ऐसे मामलों की संख्या 102 हो गई है.
अगर इन आंकड़ों को समझने के नज़रिए से देखें तो हर चार दिन में अनुसूचित जाति यानी दलित परिवार की एक महिला के साथ बलात्कार हुआ है जबकि प्रत्येक दस दिन में एक अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी परिवारों की महिला को यह दंश झेलना पड़ा है. बीबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार यह जानकारी बीबीसी गुजराती के सूचना के अधिकार के इस्तेमाल के ज़रिए मांगी गई जानकारी के जवाब में गुजरात पुलिस मुख्यालय से मिली है. ये आंकड़े सरकार के सुरक्षित गुजरात के दावे के उलट हैं.
अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ बलात्कार के सबसे ज़्यादा मामले अहमदाबाद, राजकोट, बनासकांठा, सूरत और भावनगर में मिले. जो कि इस प्रकार है, अहमदाबाद में दस साल के दौरान 152 मामले देखने को मिले जबकि राजकोट में 96 मामले सामने आए हैं. बनासकांठा में 49, सूरत में 45 और भावनगर में 36 मामले सामने आये थे.
बिहार में बढ़ते जा रहे दलित महिलाओं बलात्कार Rape of Dalit women is increasing in Bihar
NCRB की रिपोर्ट रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में बिहार में दलित अत्याचार के मामलों में 7 फीसदी का इजाफा हुआ। 2018 में 42,792 मामले दलित अत्याचार से जुड़े सामने आए तो 2019 में इनकी संख्या बढ़कर 45,935 हो गई। 2019 में 3486 रेप के ऐसे मामले आए, जिनमें पीड़ित दलित समाज से थीं।
2017 में दलित अत्याचार के 43,200 मामले दर्ज हुए। 2016 में यही आंकड़ा 40,801 का था, जबकि 2015 में दलित अत्याचार के 38,670 मामले दर्ज हुए थे। साल दर साल इसमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है। 18 फरवरी 2020 को पटना दौरे पर आए SC आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम शंकर कठेरिया ने बिहार में दलित अत्याचार पर चिंता जताई थी। उनके मुताबिक देश में दलित अत्याचार का औसत 21 प्रतिशत है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 42 प्रतिशत।
इन राज्यों में दलितों की दशा (Atrocities on Dalits) ख़राब Atrocities on Dalits in these states are bad
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सहारनपुर के बसपा सांसद हाजी फजलुर्रमान ने संसद में सवाल पूछकर एक जानकारी मांगी। उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री से दलितों पर अत्याचार के राज्य वार दर्ज मामलों की जानकारी मांगी। उसी के जवाब में यह खुलासा हुआ है।
तीन सालों में यूपी में 36,467, बिहार 20,973, राजस्थान 18,418 और मध्य प्रदेश में 16,952 दलितों पर जुल्म हुए। ये आंकड़े 2018 से 2020 के हैं। हालांकि, मंत्री द्वारा 2021 और 2022 के आंकड़े नहीं दिए गए हैं। इसके साथ ही केंद्रीय सहायता में चार सालों का ब्योरा दिया गया है। इसमें बताया गया है कि साल 2018-19 में 25,722.34 लाख रुपए, 2019-20 में 37,732.99 लाख रुपए, 2020-21 में 37,968.17 रुपए और 2021 से 14 मार्च 2022 तक 43,917.43 लाख रुपए का भुगतान किया गया है।
इन राज्यों में दलितों पर कम अत्याचार (Atrocities on Dalits) Atrocities on Dalits in these states
भारत सरकार के डेटा में 2018 से 2020 के बीच अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों के सबसे कम मामले इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में दर्ज हुए हैं। त्रिपुरा में 03, चंडीगढ़ में 05, दादरा और नगर हवेली और दमन दीव में 05, सिक्किम में 09, गोवा में 10, पुडुचेरी में 20, असम में 57, दिल्ली में 181, उत्तराखंड में 229 और पश्चिमी बंगाल में 373 केस दर्ज हुए हैं। तीन सालों में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लद्दाख और लक्ष्यद्वीप में दलितों पर एक भी अत्याचार नहीं हुआ।
देश में तीन सालों में 1.39 लाख केस दर्ज 1.39 lakh cases registered in the country in three years
देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में तीन साल में 1,39,045 अनुसूचित जाति पर अत्याचार के मुकदमे दर्ज हुए हैं। 2018 में 42,793 केस, 2019 में 45,961 केस और 2020 में 50,291 केस दर्ज हुए हैं।
डॉ. आंबेडकर को भी नहीं पीने दिया जाता था मटके से पानी Dr. Ambedkar was not even allowed to drink water from a pot
डॉ. आंबेडकर जब सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे, तो अपनी जाति के लिए सामाजिक प्रतिरोध और छुआछूत का व्यवहार देख बहुत दुखी हो उठते थे. छुआछूत और भेदभाव का अमानवीय व्यवहार इतना ज्यादा था कि अस्पृश्य बच्चों को प्यास लगने पर स्कूल का चपरासी या कोई अन्य ऊंची जाति का व्यक्ति ऊंचाई से उनके हाथों पर पानी गिराकर उन्हें पानी पिलाता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के बर्तन को छूने की इजाजत थी. ऊंची जाति के लोगों का ऐसा मानना था कि ऐसा करने से पानी और बर्तन अपवित्र हो जाएंगे. अस्पृश्य बच्चों को पानी पिलाने का काम स्कूल का चपरासी करता था. उसकी अनुपस्थिति में अक्सर अस्पृश्य बच्चों को बिना पानी के ही प्यासे रह जाना पड़ता था.
ऐसे दिलाया दलितों को पानी पीने का अधिकार This is how Dalits got the right to drink water
1920 के दशक में डॉ. आंबेडकर लंदन से बैरिस्टर बनकर वापस लौटे थे. वह 1926 में बम्बई विधान परिषद के सदस्य भी बने थे. इस समय तक उन्होंने सामाजिक कार्यों और राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी थी.
बाबा साहेब ने अपने समाज को बताया कि सार्वजनिक स्थान से पानी पीने का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है. 1923 में बम्बई विधान परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया कि सरकार द्वारा बनाए गए और पोषित तालाबों से अछूतों को भी पानी पीने की इजाजत है. 1924 में महाड़ नगर परिषद ने इसे लागू करने के लिए एक प्रस्ताव भी पास किया. फिर भी अछूतों को स्थानीय सवर्ण हिंदुओं के विरोध के कारण पानी पीने की इजाजत नहीं थी. बाबा साहेब का उद्देश्य दलितों में उनके मानव अधिकारों के लिए जारूकता पैदा करना था. उन्होंने यह निश्चय किया कि हमारा अछूत समाज इस तालाब से पानी पीकर रहेगा.
इसके लिए दो महीने पहले एक सम्मेलन बुलाया गया. लोगों को गांव-गांव भेजा गया कि 20 मार्च, 1927 को हम इस तालाब से पानी पिएंगे. सम्मेलन में बाबा साहेब आंबेडकर ने अछूतों की भीड़ के सामने ओजस्वी भाषण दिया कि हमें गंदा नहीं रहना है, साफ कपड़े पहनने हैं, मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाना है. हम भी इंसान हैं और दूसरे इंसानों की तरह हमें भी सम्मान के साथ रहने का अधिकार है.
उस वक्त महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में महाड़ कस्बे के चावदार तालाब में सिर्फ सवर्णों को ही नहाने और पानी पीने का हक था है. आंबेडकर ने कहा कि इस तालाब का पानी पीकर हम अमर नहीं हो जाएंगे, लेकिन पानी पीकर हम दिखाएंगे कि हमें भी इस पानी को पीने का अधिकार है. जब कोई बाहरी इंसान या जानवर भी इस तालाब का पी सकता है, तो हम पर रोक क्यों? बाबा साहब ने इस आंदोलन की तुलना फ्रांसीसी क्रांति से की. भाषण के बाद डॉ. आंबेडकर हज़ारों अनुयायियों के साथ चावदार तालाब गए, और वहां पानी पिया.
पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए बहुत बहुत सुक्रिया हम आशा करते है कि आज के आर्टिकल Atrocities on Dalits से जरूर कुछ सीखने को मिला होगा, अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया है तो इसे शेयर करना ना भूले और ऐसे ही अपना प्यार और सपोर्ट बनाये रखे THEHALFWORLD वेबसाइट के साथ चलिए मिलते है नेक्स्ट आर्टिकल में तब तक के लिए अलविदा, धन्यवाद !