Lord Krishna: कृष्ण की दोनों माताएं यशोदा और देवकी के जीवन का सच…

Lord Krishna: कृष्ण की दोनों माताएं यशोदा और देवकी के जीवन का सच...

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Lord Krishna
Lord Krishna The truth of the life of Yashoda and Devaki, both mothers of Krishna.

भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) का ऐसा परिचय जिसे शायद आपने पहले कभी सुना या पढ़ा होगा । 3228 ई.पू., श्रीकृष्ण (Lord Krishna) संवत् में श्रीमुख संवत्सर, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, बुधवार के दिन मथुरा में कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया, पिता- श्री वसुदेव जी थे । उसी दिन वासुदेव ने नन्द-यशोदा जी के घर गोकुल में छोड़ा । आज हम बात करेंगे भगवन श्री कृष्णा (Lord Krishna) की माँ यानि यशोदा और देवकी के बारे में.

भगवान् कृष्ण का जीवन परिचय Biography of Lord Krishna

भगवान् कृष्ण (Lord Krishna) भारतीयों आराध्य देव हैं। यह भगवान विष्णु के 8वें अवतार माने जाते है। इनको कान्हा, केशव, मुरारी, श्याम, मुरलीवाले, गिरधर, कनहिया, छलिया, भगवान कृष्ण, कृष्णा, लोकपाल, दिग्विजयी आदि नामों से भी जाना जाता है। भारत में इनके जन्मदिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, इस दिन भगवान् कृष्ण और राधा जी की पूजा होती है। भगवान् कृष्ण का जन्म अष्टमी के दिन मथुरा के एक कारावास में हुआ था

कंश ने वासुदेव और देवकी की सातों संतानों को मार डाला था Kansha killed the seven children of Vasudeva and Devaki.

जब कंश अपनी बहन देवकी को वासुदेव के राज्य में छोड़ने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई, जिसमे यह कहा गया था की देवकी की होने वाली 8वीं संतान कंस का वध करेगी। यह बाद सुनकर कंश ने देवकी को कारागार में डाल दिया था। बाद में उसने बासुदेव को भी कारागार में डलवा दिया था, और बाद में कंश ने इनकी सातों संतानों को मार डाला। बाद में भगवान् कृष्ण का जन्म हुआ, उसी समय नंद और यशोदा ने बच्ची को जन्म दिया था, तभी वासुदेव वृंदावन में कृष्ण को यशोदा मैय्या के पास पास सुलाकर बच्ची को लेकर वापस कारागार लौट आए थे।

कृष्ण माँ देवकी का जीवन Life of Krishna Maa Devaki

शास्त्रों के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण (Lord Krishna) पक्ष की षष्ठी तिथि को ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से मां यशोदा का जन्म हुआ था। इनका जन्म ब्रज में स्थित सुमुख नाम के गोप और उनकी पत्नी पाटला के यहां हुआ था। मां यशोदा का विवाह ब्रज के राजा नंद से संपन्न हुआ था। कहा जाता है कि पिछले जन्म में नंद, द्रोण थे। मान्यताओं के अनुसार, मां देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था लेकिन उनका लालन-पोषण मां यशोदा ने किया था। कृष्ण के पिता वासुदेव ने कृष्ण जी के पैदा होते ही उन्हें कंस से बचाने के लिए गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ दिया था। इसलिए कृष्ण (Lord Krishna) जी को मां यशोदा की माता के रूप में जाना जाता है।

माता यशोदा के जीवन से जुड़ी एक कथा बेहद प्रचलित है जिसके बारे में शायद हर कोई नहीं जानता है। ऐसे में जागरण अध्यात्म के इस लेख में हम आपको माता यशोदा की एक प्रचलित कथा सुना रहे हैं। आइए पढ़ते हैं मां यशोदा की पौराणिक कथा।

कथा के अनुसार, माता यशोदा ने अपने पूर्व जन्म में भगवान विष्णु (Lord Krishna) की तपस्या की थी। विष्णु जी उनकी तपस्या से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने को कहा। तब मां यशोदा ने कहा कि मेरी तपस्या तभी पूर्ण होगी जब आप मुझे पुत्र के रूप में प्राप्त होंगे। तब श्री हरि ने कहा कि वो माता देवकी और वासुदेव के घर जन्म लेंगे। लेकिन मातृत्व का सुख मुझे आपसे ही प्राप्त होगा। इसके बाद समय के साथ ऐसा ही हुआ, माता यशोदा ने ही श्रीकृष्ण को मातृत्व सुख दिया।

कृष्ण माँ यशोदा का योगदान Contribution of Krishna Maa Yashoda

ब्रजमंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से यशोदा का जन्म हुआ. वहीं उनका विवाह गोकुल के प्रसिद्ध व्यक्ति नंद से हुआ. कहते हैं कि यशोदा वैश्य समाज से थीं.

गोकुल में श्रीकृष्ण Shri Krishna in Gokul

कृष्ण (Lord Krishna) को जिस माता ने पाला उनका नाम था यशोदा. वहीं इतिहास में देवकी की कम लेकिन यशोदा की चर्चा ज्यादा होती है, क्योंकि उन्होंने ही कृष्ण को बेटा समझकर पाल-पोसकर बड़ा किया और एक आदर्श मां बनकर इतिहास में अजर-अमर हो गई. इसी के साथ कहा जाता है कंस से रक्षा करने के लिए जब वासुदेव जन्म के बाद आधी रात में ही कृष्ण को यशोदा के घर गोकुल में छोड़ आए तो उनका पालन-पोषण यशोदा ने किया. वहीं महाभारत और भागवत पुराण में बालक कृष्ण की लीलाओं के अनेक वर्णन मिलते हैं जिनमें यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन, माखन चोरी और उनको यशोदा द्वारा ओखल से बांध देने की घटनाओं का प्रमुखता से वर्णन किया जाता है. इसी के साथ यशोदा ने बलराम के पालन-पोषण की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे. वहीं उनकी एक पुत्री का भी वर्णन मिलता है जिसका नाम एकांगा था.

यशोदा मैया को दिया अपार सुख Immense happiness given to Yashoda Maiya

दरअसल भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) ने माखन लीला, ऊखल बंधन, कालिया उद्धार, पूतना वध, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख दिया था. वहीं इस प्रकार 11 वर्ष 6 महीने तक माता यशोदा के महल में कृष्ण की लीलाएं चलती रहीं और इसके बाद कृष्ण (Lord Krishna) को मथुरा ले जाने के लिए अक्रूरजी आ गए. जी दरसल यह घटना यशोदा के लिए बहुत ही दुखद रही और यशोदा विक्षिप्त-सी हो गईं क्योंकि उनका पुत्र उन्हें छोड़कर जा रहा था. वैसे तो यह बहुत मुश्किल है कि दूसरे के पुत्र को अपने पुत्र के जैसे पालना लेकिन माँ यशोदा ने यह किया. केवल इतना ही नहीं यशोदा माता से जुड़ी कई घटनाएं और उनके पूर्व जन्म की कथाएं भी पुराणों में मिलती है.

कौन थे वे 6 शिशु who were those 6 babies

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मलोक में स्मर, उद्रीथ, परिश्वंग, पतंग, क्षुद्र्मृत व घ्रिणी नाम के 6 देवता हुआ करते थे। जो ब्रह्माजी के कृपा पात्र थे। कथाओं के अनुसार इन पर सदैव ब्रह्मा जी की कृपा और स्नेह दृष्टि बनी रहती थी। इनके द्वारा की गई हर छोटी-मोटी गलती को ब्रह्म जी नज़रंदाज़ कर देते थे। जिस कारण धीरे-धीरे अपने ऊपर घमंड होने लगा। उन्हें लगने लगा कि उनके सामने कोई कुछ नहीं है। इसी दौरान उन्होंने एक दिन ब्रह्मा जी का भी अनादर कर दिया। जिसके चलते ब्रह्मा जी को उन पर क्रोध आ गया इसी क्रोध के आवेश में आकर उन्होंने उन्हें पृथ्वी पर दैत्य वंश में जन्म का श्राप दे दिया। श्राप मिलते ही उनकी भ्रष्ट बुद्धि ठीक हो गई और वो ब्रह्मा जी से क्षमा मांगने लगे। ब्रह्मा जी को उन पर दया आ गई और उन्होंने उन्हें श्राप को कम करते हुए कहा कि अब तुम्हें दैत्य वंश नें जन्म तो लेना ही पड़ेगा पर तुम्हारा पू्र्व ज्ञान बना रहेगा।

जिसके बाद समयानुसार उन 6 देवताओं ने राक्षसराज हिरण्यकश्यप के घर जन्म लिया। इस दौरान उन्होंने पूर्व जन्म का ज्ञान होने के कारण कोई गलत काम नहीं किया। सारा समय उन्होंने ब्रह्मा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करने में ही बिताया। जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा।

उन 6 देवताओं ने दैत्य योनि के प्रभाव से उन्होंने वैसा ही वर मांगा कि हमारी मौत न देवताओं के हाथों हो, न गन्धर्वों के, न ही हम हारी-बीमारी से मरें। उनका ये वरदान सुनते ही ब्रह्माजी तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। इधर हिरण्यकश्यप अपने पुत्रों से देवताओं की उपासना करने के कारण नाराज़ था। जिसके बाद उसने उन सबको श्राप दे डाला की तुम्हारी मौत देवता या गंधर्व के हाथों नहीं एक दैत्य के हाथों होगी।

कहा जाता है इसी श्राप के चलते उन्होंने देवकी के गर्भ से जन्म लिया और कंस के हाथों मरकर सुतल लोक में जगह पाई थी।

अपनों से बड़ों का सम्मान नहीं करता उसे अपने जीवन में सुख की प्राप्ति नहीं। इसलिए अपने जीवन काल में हमेशा अपनों से बड़ों का आदर करें। इससे आप पर देवी लक्ष्मी की कृपा तो होगी ही साथ ही साथ आपके घर में इनका वास भी होगा।।

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पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए बहुत बहुत सुक्रिया हम आशा करते है कि आज के आर्टिकल Lord Krishna से जरूर कुछ सीखने को मिला होगा, अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया है तो इसे शेयर करना ना भूले और ऐसे ही अपना प्यार और सपोर्ट बनाये रखे THEHALFWORLD वेबसाइट के साथ चलिए मिलते है नेक्स्ट आर्टिकल में तब तक के लिए अलविदा, धन्यवाद !