Malala Yousufzai: एक महिला बुर्का पहने या बिकिनी निर्णय खुद का हो, आइये जानते है International Malala Day क्यों मनाया जाता है?

Malala Yousufzai: एक महिला बुर्का पहने या बिकिनी निर्णय खुद का हो, आइये जानते है International Malala Day क्यों मनाया जाता है?

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Malala Yousufzai
Malala Yousufzai एक महिला बुर्का पहने या बिकिनी निर्णय खुद का हो, आइये जानते है International Malala Day क्यों मनाया जाता है

International Malala Day 2022: हर साल 12 जुलाई को पाकिस्तान की मशहूर एक्टिविस्ट मलाला यूसुफजई के जन्म दिवस के उपलक्ष में विश्व स्तर पर विश्व मलाला दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के घोषणा के बाद इस साल भी मनाया गया है। महिला शिक्षा के लिए काम करने वाली और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई (Malala Yousufzai) को उनके कार्यों के लिए सम्मानित करने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मलाला दिवस (Malala Day) मनाया जाता है। मलाला केवल 24 साल की एक लड़की थी जिन्होंने ऐसा काम किया। जिसके सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।

मलाला दिवस का इतिहास और महत्व

दरअसल, 12 जुलाई 2013 को मलाला ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक भाषण दिया था, तब वह महज 16 साल की एक पाकिस्तानी एक्टिविस्ट थीं. अपने भाषण में, मलाला (Malala Yousufzai) ने विश्व स्तर पर महिलाओं की शिक्षा तक पहुंच की जरूरत की बात की थी. साथ ही विश्व नेताओं को अपनी नीतियों में सुधार करने के लिए कहा था. उस दौरान उनके सराहनीय भाषण के लिए उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन भी मिला था.

चूंकि 12 जुलाई को उनका जन्मदिन था, इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने तुरंत घोषणा की कि इस दिन को युवा कार्यकर्ता को सम्मानित करने के लिए ‘मलाला दिवस’ (Malala Day) के रूप में मनाया जाएगा

मलाला युसुफ़ज़ई का जीवनी

मलाला (Malala Yousufzai) का जन्म 12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान के मिंगोरा शहर में एक पश्तो परिवार में हुआ था। मलाला ने जिस गांव में जन्म लिया था वहां पर लड़की के जन्म पर जश्न नहीं बनाते लेकिन इसके बावजूद उनके पिता ने मलाला के जन्म पर जश्न मनाया। माता-पिता ने बच्ची का नाम मलाला (Malala Yousufzai) रखा। उनकी पश्तो जाति अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा के आस पास की बसी थी और पाकिस्तान में एक लोक कथा प्रचलित है जिसमें मईवाड़ नामक प्रांत में मलाला (Malala Yousufzai) नाम की एक लड़की रहती थी जो एक चरवाहे की बेटी थी। उस समय उनका गांव मईवाड़ अंग्रेजों के कब्जे में था जिसे छुड़ाने के लिए अंग्रेजो के साथ गांव वालों का युद्ध हुआ। जब मलाला को यह पता चला की युद्ध में गांव के कई नौजवान घायल हो गए तो उनकी मरहम पट्टी और पानी पिलाने के लिए वह युद्ध भूमि में चली गई। जहां उसने अपने गांव के नौजवानों को हारते हुए देखा।

मलाला के बारे में कुछ रोचक बातें

  • मलाला यूसुफजई (Malala Yousufzai) नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की प्राप्तकर्ता थीं. उस समय वह सिर्फ 17 साल की थीं.
  • 2009 में, पाकिस्तानी कार्यकर्ता ने बीबीसी के साथ काम करना शुरू किया और तालिबान शासन के तहत रहने के बारे में ब्लॉगिंग की, जिसने उन्हें अपने देश में एक राष्ट्रीय व्यक्ति बना दिया. वह लड़कियों की शिक्षा की वकालत करते हुए टेलीविजन पर दिखाई देने लगीं.
  • 2012 में, मलाला (Malala Yousufzai) पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रचार कर रही एक बस में सवार थी, जब तालिबान ने कथित तौर पर वाहन को हाईजैक कर लिया और उसके सिर और गर्दन में गोली मार दी थी.
  • 2015 में मलाला यूसुफजई (Malala Yousufzai) के सम्मान में एक एस्टेरोइड (Asteroid) का नाम रखा गया था.
  • युवा कार्यकर्ता ने 2018 में फिलॉसफी, इकोनॉमिक्स और पॉलिटिक्स की पढ़ाई करने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. पहले, मलाला (Malala Yousufzai) डॉक्टर बनना चाहती थीं लेकिन, अब उन्होंने राजनीति में रुचि ले ली है.
  • कार्यकर्ता को 2017 में महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा संयुक्त राष्ट्र शांति दूत के रूप में नामित किया गया था.

विश्व भर में लड़कियों के पहनावे पर विवाद को लेकर बोलीं मलाला

विश्व के देशों में लड़कियों के पहनावे पर समय-समय पर उठते विवाद को लेकर मलाला ने कहा, ‘दुनिया भर में लड़कियां जो पहनती हैं, उसके लिए उन पर हमले हो रहे हैं. भारत के कर्नाटक में स्कूल और कॉलेजों में लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे उन्हें अपनी शिक्षा और हिजाब में से किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें सिर ढकने को लेकर अपमान सहना पड़ा.’

‘फ्रांस में सांसदों ने जनवरी में खेल प्रतियोगिताओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए मतदान किया. 160 में से 143 सांसदों ने हिजाब पर बैन के लिए मतदान किया. अफगानिस्तान में तालिबान के अधिकारी महिलाओं को काम करने के लिए कंबल पहनने की सलाह दे रहे हैं.’

मलाला (Malala Yousufzai) ने आगे लिखा कि दुनिया के हर कोने में महिलाएं और लड़कियां यह समझती हैं कि अगर उन्हें सड़क पर परेशान किया जाता है या उन पर हमला किया जाता है, तो उनके हमलावरों से अधिक मुकदमा उनके कपड़ों पर होने की संभावना रहती है.

उन्होंने लिखा, ‘महिलाओं से लगातार कहा जा रहा है कि वे किसी खास तरह के कपड़े पहनें या फिर ये कि वो उन कपड़ों को पहनना बंद कर दें. लगातार उनका यौन शोषण या दमन किया जाता है. हमें घर पर पीटा जाता है, स्कूल में दंड दिया जाता है और जो हम पहनते हैं, उसके लिए सार्वजनिक रूप से परेशान किया जाता है. ‘

‘वर्षों पहले जब तालिबान ने मेरे समुदाय की महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया था, तब मैंने तालिबान के खिलाफ आवाज उठाई थी. और पिछले महीने मैंने भारत की लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ बात की. ये विराधाभास नहीं है. दोनों ही मामलों में महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखा जा रहा है. अगर कोई मुझे सिर ढकने के लिए मजबूर करता है तो मैं विरोध करूंगी. अगर कोई मुझे अपना दुपट्टा हटाने के लिए मजबूर करता है, तो भी मैं विरोध करूंगी.’

बिकिनी या बुर्का- फैसला महिला का होना चाहिए

मलाला (Malala Yousufzai) का कहना है कि एक महिला क्या पहनती है, ये पूर्ण रूप से उसका फैसला है. उन्होंने कहा, ‘चाहे एक महिला बुर्का पहने या बिकिनी- उसे अपने लिए निर्णय लेने का अधिकार है.’

जींस वाली तस्वीर पर हुए विवाद पर भी बोलीं मलाला

मलाला (Malala Yousufzai) की एक तस्वीर वायरल हुई थी जिसमें उन्होंने जींस और जैकेट पहना था. जींस पहनने को लेकर कई लोगों ने मलाला की आलोचना की थी कि वो ऑक्सफोर्ड जाकर इस्लाम की शिक्षा को भूल गई हैं.

मलाला (Malala Yousufzai) ने इसे लेकर लिखा, ‘कुछ लोग मुझे पारंपरिक सलवार कमीज से बाहर देखकर चौंक गए थे. उन्होंने मेरी आलोचना की कि मैं पश्चिम के पहनावे की तरफ मुड़ गई हूं. लोगों ने दावा किया कि मैंने पाकिस्तान और इस्लाम को छोड़ दिया है. दूसरों ने कहा कि जींस के साथ मेरा दुपट्टा उत्पीड़न का प्रतीक है और मुझे इसे हटा देना चाहिए. मैंने कुछ नहीं कहा. मुझे लगा कि मैं सभी की अपेक्षाओं पर तो खरी नहीं उतर सकती.

मलाला ने कहा, “सच्चाई यह है कि, मुझे अपने स्कार्फ बहुत पसंद हैं. जब मैं उन्हें पहनती हूं तो मैं अपनी संस्कृति के करीब महसूस करती हूं. मुझे अपने फूलों की पैटर्न वाले सलवार- कमीज पसंद हैं. मुझे अपनी जींस भी बहुत पसंद है. और मुझे अपने स्कार्फ पर गर्व है.’

दुनिया में सब लोगों का एक समान नजरिया नहीं हो सकता, हर इंसान सभी चीजों को अलग – अलग नजर से देखता है, मुझे नहीं लगता कि कोई चीज (पहनावा) सही या गलत होती है, हमारे देखने का नजरिया होता है कि हम उसे कैसे देख रहे है अच्छे लोगों को बुराई में भी अच्छाई देखने की ताक़त होती है, दरअशल, बात करते है हम पहनावे की तो हमारे नजरिये से इंसान क्या पहनता है यह उसका खुद का निर्णय होना चाइये, अगर इस पर कोई आपकी आलोचना करता है तो यह उसके लिए उसकी मूर्खता का प्रमाण है. जब वो इंसान आपकी खुबिया नहीं देख पता तो उसे कोई हक़ नहीं है कि वो आप में कमिया ढूंढे.

मलाला हमेशा महिलाओं के हक़ में लड़ी है और उम्मीद है आगे भी ऐसा ही करेगी, हम सभी जानते है कि मलाला का शुरुआती जीवन कठिनाइयों में गुजरा है उन्होंने खुद पर मानसिक व शरीक रूप से कई हमले झेले है. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी, और महिलाओं के हित और शिक्षा के लिए लड़ती रही है. शिक्षा हर इंसान का हक़ है चाहे वो महिला हो या पुरुष. लेकिन हमेशा से महिला शिक्षा का विरोध किया गया है, आखिर ऐसा क्यों ? क्या महिलाओं को पुरुष अपने से कम आंकते है. या फिर डर है कि महिलायें शिक्षा पाकर पुरुषों से और आगे निकल जाएगी. खेर वैसे आज भी महिलायें पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है, हर क्षेत्र में कंधे से कन्धा मिला कर देश और दुनिया के विकास के हित में कार्य कर रही है. लेकिन इंसान अपनी सोच और आदतों का गुलाम है जिसे वो सुधारना नहीं चाहता.