देश की पहली महिला टीचर सावित्री बाई फुले (Savitribai Phule) का जन्म आज ही के दिन 1831 में महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई और भारत में महिला शिक्षा की अगुआ बनीं। सावित्री बाई फुले (Savitribai Phule) को भारत की सबसे पहली आधुनिक नारीवादियों में से एक माना जाता है। 1840 में महज नौ साल की उम्र में सावित्रीबाई (Savitribai Phule) का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से हुआ था। उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। 1897 में पुणे में प्लेग फैला था और इसी महामारी की वजह से 66 वर्ष की उम्र में सावित्रीबाई (Savitribai Phule) फुले का 10 मार्च 1897 को पुणे में निधन हो गया था।
लड़कियों के लिए खोले थे 18 स्कूल –
सावित्रीबाई (Savitribai Phule) ने अपने पति ज्योतिराव के साथ मिलकर महिला शिक्षा पर बहुत जोर दिया। देश में लड़कियों के लिए पहला स्कूल साावित्रीबाई (Savitribai Phule) और उनके पति ज्योतिराव ने 1848 में पुणे में खोला था। इसके बाद सावित्रीबाई (Savitribai Phule) और उनके पति ज्योतिराव ने मिलकर लड़कियों के लिए 17 और स्कूल खोले।
विधवाओं, रेप विक्टिम पीड़िताओं के लिए ”बालहत्या प्रतिबंधक गृह” –
प्रेग्नेंट रेप विक्टिम की दयनीय स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर ऐसी पीड़िताओं के लिए ”बालहत्या प्रतिबंधक गृह” नाम से एक देखभाल केंद्र खोला। विधवाओं के दुखों को कम करने के लिए उन्होंने नाइयों के खिलाफ एक हड़ताल का नेतृत्व किया, ताकि वे विधवाओं का मुंडन न कर सकें, जो उस समय की एक प्रथा थी।
किया गया था सावित्रीबाई (Savitribai Phule) फुले पर एक डाक टिकट जारी –
1998 में भारतीय डाक विभाग ने सावित्रीबाई (Savitribai Phule) फुले पर एक डाक टिकट जारी किया था, सावित्रीबाई (Savitribai Phule) न केवल महिलाओं के अधिकारों के लिए ही काम नहीं किया, बल्कि वह समाज में व्याप्त भ्रष्ट जाति प्रथा के खिलाफ भी लड़ीं। जाति प्रथा को खत्म करने के अपने जुनून के तहत उन्होंने अछूतों के लिए अपने घर में एक कुआं बनवाया था। सावित्रीबाई (Savitribai Phule) न केवल एक समाज सुधारक थीं, बल्कि वह एक दार्शनिक और कवयित्री भी थीं। उनकी कविताएं अधिकतर प्रकृति, शिक्षा और जाति प्रथा को खत्म करने पर केंद्रित होती थीं।
अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा –
वह बच्चों को स्कूल जाने के लिए उन्हें वजीफा देती थीं। ऐसे वक्त में जब देश में जाति प्रथा अपने चरम पर थीं, बच्चों को पढ़ाई करने और स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए उन्होंने एक अनोखा प्रयास किया। उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जो बिना पुजारी और दहेज के विवाह आयोजित करता था।