असुरक्षित माहौल में महिलाओं का वोट आखिर किसको जायेगा ?

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women safety

चुनाव का बिगुल बज चुका है चारों और आरोप-प्रत्यारोप तथा चुनावी घोषणाएं हो रही है परन्तु महिलाओं ((women safety) की स्तिथि के बारे में ज्यादा बातें नही हो रही है। उनके लिए न तो कोई बड़े वादे किये जाते और न ही कोई सरकार उनकी स्तिथि पर ध्यान देकर काम कर रही है। महिला आरक्षण की बात की जाये तो कई सालों से वो अटका पड़ा है। जबकि पिछले 20 साल में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें 10-10 साल के लिए केंद्र में रह चुकी है।

होता यह है की सरकारे आती है 5 साल राज करती है चली जाती है और जिन मुद्दों को चुनाव में उठाकर चुनाव जीतती है वही मुद्दों को घुमा फिराकर दोबारा नया एजेंडा तैयार करती है चुनाव जीतती है अपनी जेब भरती है और मुद्दे वही के वही रहते है.

भोलीभाली जनता को ठगती है और फिर दोबारा चुनाव आने पर हाथ जोड़ कर खड़ी हो जाती है. जनता उम्मीद करती है की सरकार कुछ काम करेगी हमारा भला होगा हमे बिजली, पानी, सड़के, अस्पताल तथा महिलाओं को सुरक्षा मिलेगी मगर चुनाव जीतते ही जेब भरने का सिलसिला फिर से शुरू हो जाता है । विकास के नाम पर सिर्फ आंकड़े पेश किये जाते है जो भी आजकल तो सरकारों के खिलाफ जा रहे है।

चुनाव प्रचार में बेहिसाब पैसा खर्च किया जाता है और चुनाव जीतने के बाद इस खर्चे को ब्याज सहित जनता से ही वसूला जाता है। चुनाव लड़ने के लिए पार्टियों को कई बड़े बड़े लोग चंदा देते है और जब वो चुनाव जीतते है तो सबसे पहले इन्ही लोगो को फायदा पहुचाते है ताकी फिर दोबारा से वो इन्हें चंदे के रूप में मोटा पैसा दे सके और बेचारी जनता पहले वोट देती है और बाद में वोट देने की कीमत।

आजादी के बाद से आज तक देश मे हजारो लाखो कि. मी. सड़के बन गयी है मगर आज भी सड़को पर बने गड्डो से न जाने कितने मासूमो की जान चली जाती है । जीने को तो हम 21वी सदी में जी रहे है मगर आज भी हमारे देश मे लाखो लोग सही और समय पर इलाज के अभाव में मर जाते है। देश में सरकारी अस्पतालों के हालात ऐसे है कि मरीज ठीक हो या न हो मगर ठीक आदमी चला जाये तो बीमार जरूर हो जाये। इन अस्पतालों की हालत य है की महिलाओं की डिलीवरी को लेकर बड़ा संसय बना हुआ है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में सुविधाये अच्छी नहीं है तथा निजी अस्पतालों में लूट मची हुई है। महिलाओं के लिए बात की जाए तो सचाई यह है की निजी अस्पतालों में तो डिलीवरी के नाम पर सर्जरी से बच्चे पैदा किये जा रहे है तथा मोती फीस वसूली जा रही है।

सरकार हर साल करोड़ो रूपये शिक्षा पर खर्च करती है मगर सरकारी स्कूलों में शिक्षा बद्तर होती जा रही है ये नेताओं व पैसे वालों के बच्चे तो महँगी महँगी प्राइवेट स्कूलों में या विदेशो में पढ़तें है और इन नेताओ को भगवान बनाने वाली गरीब जनता के बच्चो को सरकारी स्कूल तो नसीब होता है मगर शिक्षा रामभरोसे ही मिलती है।

राशन बिजली पानी जैसी आम जरूरते भी जनता को ठीक से नही मिलती। दिनों दिन बेरोजगारी की दर बढ़ रही है रोजगार नही होने के कारण अपराध बढ़ रहे है। हमारी सुरक्षा के लिए पुलिस है मगर ज्यादातर लोग इन्ही से खुद को असुरक्षित महसूस करते है।

किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नही मिलता। हर बजट में करोड़ो अरबो रुपये किसानों को सक्षम और खेती को बढ़ाने के लिए दिए जाते है मगर कितने पैसे सही से उपयोग में लिए जाते है कोई नही जानता। चुनाव के समय किसानों के लिए बड़े-बड़े वादे किए जाते है फिर भी देश का किसान आत्महत्या कर रहा है।

महिला सुरक्षा ((women safety)को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी एजेंडे में बड़े-बड़े वादे करती है और चुनाव जीतने के बाद सभी वादे खोखले साबित होते है। पिछली सरकार व उससे पिछली सरकार की बातें करें तो हमेशा महिलाओं के खिलाफ दिनों दिन हिंसा बढ़ती जा रही है और हमारी सरकारें इन पर रोक नहीं लगा पाई।