IAS अफसर ने अपनी शादी में नहीं होने दिया अपना कन्यादान, शादी में क्या है कन्यादान (Kanyadan) का महत्व?

IAS अफसर ने अपनी शादी में नहीं होने दिया अपना कन्यादान, शादी में क्या है कन्यादान (Kanyadan) का महत्व?

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Kanyadan
IAS अफसर ने अपनी शादी में नहीं होने दिया अपना कन्यादान, शादी में क्या है कन्यादान (Kanyadan) का महत्व

नरसिंहपुर जिले के जोबा गांव से एक बड़ी खबर आई है जी हाँ दरअशल हुआ यूँ कि एक महिला आईएएस (IAS) अफसर और आईएफएस अधिकारी की शादी चर्चा में है. शादी में चर्चा का विषय यह है रहा कि तपस्या ने कन्यादान कराने से इनकार कर दिया.जी हाँ, हिन्दू रीति-रिवाजों और संस्कृति को ना मानते हुवे तपस्या ने अपने पिता से कहा है कि ‘मैं दान की चीज नहीं हूं, आपकी बेटी हूं.

दरअशल ( पंजाब केशरी कि रिपोर्ट के अनुसार ) आपको बता दे कि बॉलीवुड अभिनेत्री आलिया भट्ट का एक विज्ञापन आया था, आलिया भट्ट वाले विज्ञापन में कन्यादान ( Kanyadan ) की परंपरा पर सवाल उठाया था. जिसका लोगो ने जमकर विरोध करते हुए कहा कि हिंदू धर्म में कन्यादान ( Kanyadan ) को सबसे बड़ा दान माना जाता है। यह विज्ञापन हिंदू संस्कृति के खिलाफ है। लोगों ने इस विज्ञापन को फेक फेमिनिज्म बताया है।

क्या था विज्ञापन में ?

विज्ञापन में आलिया भट्ट दुल्हन के रूप में नजर आ रही है, अपने पति के साथ मंडप में बैठी है। तभी वो सब कुछ याद करते हुए बताई है कि कैसे परिवार ने उसको पराया धन होने का एहसास दिलाया। आलिया भट्ट मन में सोच रही है कि क्या ‘क्या मैं दान की जाने वाली वस्तु हूं? केवल कन्यादान ही क्यों। नया विचार कन्यामान (Kanyadan)। लोगो ने इस विज्ञापन पर कई सवाल उठाये थे, विज्ञापन के साथ आलिया भट्ट भी काफी ट्रोल हो रही है। एक यूजर बोला कि मालूम नहीं ये लोग हिंदू धर्म के पीछे ही क्यों पड़े हुए हैं, जरा दूसरे धर्मों के रीति-रिवादों पर भी ध्यान दो। और बाद मे इस विघापन को हटा लिया गया.

आखिर क्यों मना किया तपस्या ने कन्यादान के लिए

search best news के अनुसार तपस्या (IAS) कि शादी में कन्यादान (Kanyadan) की रस्म नहीं कराइ गई, गुरुवार को जोवा गांव में इस शादी का रिसेप्शन हुआ है. रिसेप्शन में दोनों पक्षों के रिस्तेदार व दोस्त शामिल हुए थे, वैसे आप सब यह तो जानते ही होंगे कि हिंदू संस्कृति में कन्यादान (IAS) का विशेष महत्व है लेकिन नरसिंहपुर जिले में पैदा हुई तपस्या (IAS) परिहार ने इस रस्म को ठोकर मारते हुए अपनी शादी में कन्यादान (Kanyadan) की रस्म को नहीं होने दिया,

तपस्या के लिए इस फैसले को लेकर तपश्या (IAS) का कहना है कि ‘बचपन से ही उनके मन में समाज की इस विचारधारा को लेकर लगता था कि कैसे कोई मेरा कन्यादान (Kanyadan) कर सकता है, वो भी मेरी इच्छा के बगैर.यही बात धीरे-धीरे मैंने अपने परिवार से चर्चा की और इस बात को लेकर परिवार के लोग भी मान गए. परिवार ने इस बात के लिए दूसरे पक्ष को भी मनाया और आखिरकार वो भी इसके लिए राजी हो गए, और बिना कन्यादान के दोनों कि शादी हो गई. आईएएस (IAS) तपस्या परिहार का कहना है कि ‘दो परिवार आपस में मिलकर विवाह करते हैं, तो फिर बड़ा, छोटा या ऊंचा नीचा होना ठीक नहीं.क्यों किसी का दान किया जाए और जब मैं शादी के लिए तैयार हुई तो मैंने भी परिवार के लोगों से चर्चा कर कन्यादान की रस्म को शादी से दूर रखा.

लड़की को शादी के बाद पूरी तरह बदलना होता है. – IFS गर्वित

IFS गर्वित से पूछने पर कि वो तपश्या (IAS) के इस फैसले पर क्या कहते है, तो गर्वित का कहना है कि क्यों किसी लड़की को शादी के बाद पूरी तरह बदलना होता है. चाहे मांग भरने की बात हो या कोई ऐसी परंपरा जो ये प्रमाणित करें कि लड़की शादीशुदा है. ऐसी रस्में लड़के के लिए तो कभी लागू नहीं होती मेरा मानना यह है कि इस तरह की मान्यताओं को हमें धीरे-धीरे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए. वहीं तपस्या के पिता के साथ पूरा परिवार भी शादी से खुश हैं. हालाँकि कई लोग तपस्या के इस कदम को गलत बता रहे हैं और उनका कहना है हिन्दू होने के नाते हर रस्म को निभाना चाहिए.

क्या है कन्यादान ?

हिंदू धर्म में शादियां बड़ी ही धूमधाम से होती हैं। शादी में हर संस्कार और हर रस्म का अपना अलग महत्व होता है। खासकर लड़कियों की शादी में तो हर रस्म और रिवाज का एक अलग महत्व होता है। बात हो बेटी की शादी की तो कोई कोर कसर नहीं छोड़ता यह चाहे समाज का दर हो या अपनी श्रद्धा लेकिन कोशिश यही रहती है की अपनी बेटी शादी में कोई कमी ना रहे, आप जानते ही है कि शादी की एक रस्म होती है कन्यादान, जिसे लेकर बीते दिनों काफी बवाल भी मचा हुआ था। कई लोग इस रस्म के महत्व और ये रस्म क्या मायने रखती है इस बारे में नहीं जानते। तो आइये आज हम आपको बताए हैं कि क्या होता है कन्यादान और क्यों हिंदू धर्म में इसकी इतनी मान्यता है?

वर को भगवान विष्‍णु का स्‍वरूप

NBT के अनुसार वेदों और पुराणों के अनुसार विवाह में वर को भगवान विष्‍णु का स्‍वरूप माना जाता है। विष्‍णु रूपी वर कन्‍या के पिता की हर बात मानकर उन्‍हें यह आश्‍वासन देता है कि वह उनकी पुत्री को खुश रखेगा और उस पर कभी आंच नहीं आने देगा।

दक्षिण भारत में ऐसा कन्‍यादान

कन्‍यादान (Kanyadan) की रस्‍म भी देश के अलग-अलग हिस्‍सों में अलग तरीके से निभाई जाती है। दक्षिण भारत में कन्‍या अपने पिता की हथेली पर अपना हाथ रखती है और वर अपने ससुर की हथेली के नीचे अपना हाथ रखता है। फिर इसके ऊपर जल डाला जाता है। पुत्री की हथेली से होता हुआ जल पिता की हथेली पर जाता है और इसके बाद वर की हथेली पर।

ऐसे शुरुआत हुई कन्यादान की

पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था। 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था।

इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो। इन्हीं की पुत्री देवी सती भी थीं जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था।