बछेंद्री पाल (Bachendri Pal), एक ऐसा नाम है जो दुनिया भर में महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है तो उन लोगों के मुंहतोड़ जवाब भी है जो महिलाओं को किसी से कम समझते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतेह करने वाली पहली भारतीय महिला की. उन्होंने एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास रच दिया था. उपलब्धि हासिल करने पर, वह तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी के रैंक में शामिल हो गईं, जो माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाले पहले पुरुष थे.
बछेंद्री पाल का जीवन परिचय – Biography of Bachendri Pal
बछेंद्री पाल (Bachendri Pal) ने उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी की पहाड़ों की गोद में सन् 1954 को जन्म लिया। भारत के उत्तराखंड राज्य के एक खेतिहर परिवार में जन्मी बछेंद्री ने बी.एड. किया। स्कूल में शिक्षिका बनने के बजाय पेशेवर पर्वतारोही का पेशा अपनाने पर बछेंद्री को परिवार और रिश्तेदारों का विरोध झेलना पड़ा।
भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया। 1994 में बछेंद्री ने महिलाओं के, गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता तक 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए कराकोरम पर्वत श्रृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किमी लंबा अभियान उनके द्वारा इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास था।
बछेंद्री पाल का करियर – Career of Bachendri Pal
बछेंद्री पाल (Bachendri Pal) के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था। इस टीम के द्वारा 23 मई 1984 को अपराह्न 1 बजकर सात मिनट पर 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर ‘सागरमाथा (एवरेस्ट)’ पर भारत का झंडा लहराया गया।
एवरेस्ट पर कदम रखने वाली 5वीं महिला – 5th woman to step on Everest
इस के साथ एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक क़दम रखने वाले वे दुनिया की 5वीं महिला बनीं। भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया। उन्होने 1994 में गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता तक 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए काराकोरम पर्वत शृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किमी लंबा अभियान उनके द्वारा पूरा किया गया, जिसे इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास कहा जाता है।
जब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंची बाछेंद्री – When Bachendri reached the world’s highest peak
23 मई 1984 दोपहर 1 बजकर 7 मिनट, यही वह समय था जब बाछेंद्री पाल ने अपने 30वें जन्म दिन से एक दिन पहले माउंट एवेरस्ट की चोटी पर झंडा फहराया था. उस यादगार लम्हें में उनके साथ उनकी टीम के अन्य सदस्य भी थे लेकिन एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली वे अकेली महिला थीं.
ऐसे शुरू हुआ था एवरेस्ट फतेह करने सफर – This is how the journey to conquer Everest started
1984 में बछेंद्री (Bachendri Pal) को माउंट एवरेस्ट की यात्रा के लिए चुना गया था जिनमें 11 पुरुष और 6 महिला पर्वतारोही शामिल थे. उन्हें ‘एवरेस्ट’ 84 नामक माउंट एवरेस्ट के लिए भारत के चौथे अभियान के एक भाग के रूप में चुना गया था. मार्च 1984 में, 16 सदस्यों के साथ उन्होंने काठमांडू के लिए उड़ान भरी और वहां से शुरू हुई दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की यात्रा. माउंट एवरेस्ट अभियान के लिए चुने जाने से पहले पाल ने नेशनल एडवेंचर फाउंडेशन (NAF) में पर्वतारोहण ट्रेनर के रूप में भी काम किया.
एक घटना ने तोड़ दिया था टीम के आधे लोगों का सपना – One incident had broken the dream of half of the team
15 मई को पूरी टीम ने पर्वत पर चढ़ाई शुरू की. एक रात जब सभी अपने कैंप में आराम कर रहे थे, तभी एक हिमस्खलन नीचे आया और उनका कैंप तोड़ दिया. इस घटना में आधे से ज्यादा लोगों को चोटें आईं. यहां तक कि कुछ लोग वापस भी लौट आए. लेकिन बछेंद्री पाल के साथ अन्य आधे लोगों ने हिम्मत बनाए रखी और सफर जारी रखा. टीम 23 मई 1984 को दोपहर 1.07 बजे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची.
बाछेंद्री को मिले ये सम्मान – Bachendri got this honor
माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना उनके करियर की शुरुआत भर थी. इसके बाद उन्होंने महिलाओं और कई टीमों का नेतृत्व किया. पाल को उनकी उपलब्धियों और योगदान के लिए कई सम्मान मिले. उन्हें 1984 में पद्म श्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, 1994 में राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार और 2019 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
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