बालमणि अम्मा (Balamani Amma): हो सकता है कि अपने यह नाम पहले नहीं सुना हो लेकिन इनकी रचना अपने कभी न कभी पढ़ी या सुनी जरूर होगी, चलिए आज हम आपको बताने जा रहे है बालमणि अम्मा (Balamani Amma) के बारे है, वैसे आपको बता दे कि अम्मा अब हमारे बिच नहीं है लेकिन उनकी कवितायें और उनके जीवन से मिली प्रेरणायें हमारे बिच आज भी जीवित है. उनके जन्मदिन के उपलक्ष में गूगल ने भी अपने अंदाज में डूडल बना कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी है. चलिए जानते है आखिर कौन थी बालमणि अम्मा (Balamani Amma) जिनको भारत का तीसरा सर्वोच्चा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण सम्मान भी मिला है।
नालापत बालमणि अम्मा (Balamani Amma) का जन्म 19 जुलाई, 1909 को केरल के मालाबार ज़िले के पुन्नायुर्कुलम में पिता चित्तंजूर कुंज्जण्णि राजा और माँ नालापत कूचुकुट्टी अम्मा के यहाँ नालापत में हुआ था। bharatdiscovery की रिपोर्ट के अनुसार उनका जन्म नालापत के नाम से पहचाने-जाने वाले एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ, जहां लड़कियों को विद्यालय भेजना अनुचित माना जाता था। इसलिए उनके लिए घर में शिक्षक की व्यवस्था कर दी गयी थी, जिनसे उन्होंने संस्कृत और मलयालम भाषा सीखी।
नालापत हाउस की अलमारियाँ पुस्तकों से भरी-पड़ी थीं। इन पुस्तकों में काग़ज़ पर छपी पुस्तकों के साथ ही ताड़पत्रों पर उकेरी गई हस्तलिपि वाली पुस्तकें भी थीं। इन पुस्तकों में ‘बाराहसंहिता’ से लेकर टैगोर तक का रचना संसार सम्मिलित था। नालापत बालमणि अम्मा (Balamani Amma) के मामा एन. नारायण मेनन कवि और दार्शनिक थे, जिन्होंने उन्हें साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित किया। कवि और विद्वान् घर पर अतिथि के रूप में आते और हफ्तों रहते थे। इस दौरान घर में साहित्यिक चर्चाओं का घटाटोप छाया रहता था। इस वातावरण ने नालापत बालमणि अम्मा (Balamani Amma) के चिंतन को प्रभावित किया।
नालापत बालमणि अम्मा (Balamani Amma) का विवाह 19 वर्ष की आयु में वर्ष 1928 में वी. एम. नायर से हुआ, जो आगे चलकर मलयालम भाषा के दैनिक समाचार पत्र ‘मातृभूमि’ के प्रबंध संपादक और प्रबंध निदेशक बनें। विवाह के तुरंत बाद अम्मा अपने पति के साथ कोलकाता में रहने लगीं, जहां उनके पति ‘वेलफोर्ट ट्रांसपोर्ट कम्पनी’ में वरिष्ठ अधिकारी थे।
यह कंपनी ऑटोमोबाइल कंपनी ‘रोल्स रॉयस मोटर कार्स’ और ‘बेंटले’ के उपकरणों को बेचती थी। इस कंपनी से त्यागपत्र देने के बाद उनके पति ने दैनिक समाचार पत्र ‘मातृभूमि’ में अपनी सेवाएँ देने हेतु परिवार सहित कोलकाता छोड़ने का निर्णय लिया। फलत: अल्प प्रवास के बाद बालमणि अम्मा (Balamani Amma) अपने पति के साथ कोलकाता छोड़कर केरल वापस आ गयीं। 1977 में उनके पति की मृत्यु हुई। लगभग पचास वर्ष तक उनका दांपत्य बना रहा। उनके दाम्पत्य की झलक उनकी कुछ कविताओं, यथा- ‘अमृतं गमया’, ‘स्वप्न’, ‘पराजय’ में मुखर हुई है।
नाम ( name) – बालमणि अम्मा (Balamani Amma)
पूरा नाम (Real Name ) – नालापत बालमणि अम्मा (Nalapat Balamani Amma)
जन्म तारीख (Date of birth) – 19 जुलाई 1909
उम्र( Age) – 95 साल (मृत्यु के समय )
जन्म स्थान (Place of born ) – पुन्नयुरकुलम, मालाबार जिला,
मद्रास प्रेसीडेंसी, भारत
मृत्यु की तारीख (Date of Death ) – 29 सितंबर 2004
मृत्यु का स्थान (Place of Death ) – कोच्चि , केरल , भारत
मृत्यु का कारण (Death Reason ) – अल्जाइमर रोग
गृहनगर (Hometown) – पुन्नयुरकुलम, मालाबार जिला,
मद्रास प्रेसीडेंसी, भारत
नागरिकता(Nationality) – भारतीय
धर्म (Religion) – हिन्दू धर्म
पेशा (Occupation) – कवि
आँखों का रंग (Eye Color) – काला
बालो का रंग (Hair Color ) – काला
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) – वैवाहिक
विवाह की तारीख (Marriage Date ) – साल 1928
बालमणि अम्मा (Balamani Amma) ने 20 से अधिक कविता संग्रह, कई गद्य रचनाएँ और अनुवाद प्रकाशित किए हैं। उन्हें कम उम्र में ही कविताएँ लिखने का शौक था और उनकी पहली कविता “कूप्पुकाई” 1930 में प्रकाशित हुई थी।
कोचीन साम्राज्य के पूर्व शासक परिषद थंपुरन से साहित्य निप्पुन पुरस्कार प्राप्त करने के बाद उन्हें मान्यता मिली थी। निवेदयम 1959 से 1986 तक बालमणि अम्मा की कविताओं का संग्रह है।
कूप्पुकई (1930)
अम्मा (1934)
कुटुंबनी (1936)
धर्ममर्गथिल(1938)
स्त्री हृदयम (1939)
प्रभंकुरम (1942)
भवनईल (1942)
ऊंजलींमेल (1946)
कालिकोट्टा (1949)
भावनाईल (1951)
अवार पेयदुन्नु (1952)
प्रणामम (1954)
लोकांठरांगलील (1955)
सोपनाम (1958)
मुथास्सी (1962)
अंबलथीलेक्कू (1967)
नगरथिल (1968)
वाईलारुंम्पोल (1971)
अमृथंगमया (1978)
संध्या (1982)
निवेद्यम (1987)
मथृहृदयम (1988)
सरस्वती सम्मान
मुतासी के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार (1963)
मुतासी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (1965)
आसन पुरस्कार (1989)
वैलेटोल पुरस्कार (1993)
ललिताम्बिका अंधर्जन पुरस्कार (1993)
शिक्षा पुरस्कार (1995)
एन.वी. कृष्णा वारियर अवार्ड (1997)
1987 में पद्म भूषण पुरस्कार।
बालामणि अम्मा के काव्य संकलन
कुदुम्बिनी (1936)
धर्ममार्गताल (1938)
श्री हृदयम (1939)
प्रभांकुरम (1942)
भवनयाल (1942)
ओंजलिनमेल (1946)
कालीकोट्टा (1949)
वेल्लीचथिल (1951)
हमारा पैर (1952)
प्रणम (1954)
लोकंतरंगल (1955)
सोपानम (1958)
मुतासी (1962)
माजुविंटे स्टोरी (1966)
अंबातिलेकु (1967)
नागरथिल (1968)
वेलारामबोल (1971)
अमृतंगयम (1978)
संध्या (1982)
निवेद्यम (1987)
मेरी बेटी (मलयालम) कुलक्कडविली
timesnowhindi से मिली जानकारी के अनुसार केरल के त्रिशूर जिले में जन्मी बालमणि अम्मा (Balamani Amma) ने कोई औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की थी। इसके बावजूद वो महान कवियित्री बनीं। बालमणि के मामा कवि थे। उनके पास किताबों का अच्छा-खासा कलेक्शन था। इसी के सहारे बालमणि को कवि बनने में मदद मिली। हालांकि, 19 साल की उम्र में बालमणि अम्मा (Balamani Amma) की शादी हो गई।
बालमणि अम्मा के तकरीबन 20 से ज्यादा गद्द और अनुपाद प्रकाशित हुए हैं। उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्चा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण सम्मान भी मिला है। इसके अलावा उन्हें सरस्वती सम्मान और साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
- बालमणि अम्मा (Balamani Amma) के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कभी कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की। उन्हें अपने चाचा नलप्पट नारायण मेनन से घर पर ही शिक्षा प्राप्त की।
- 19 साल की उम्र में अम्मा का विवाह वी.एम. नायर से हो गया जो मलयालम अखबार ‘मातृभूमि’ के प्रबंध निदेशक और प्रबंध संपादक थे।
- बालमणि अम्मा (Balamani Amma) की पहली कविता कोप्पुकाई, 1930 में प्रकाशित हुई थी। उन्हें कोचीन साम्राज्य के पूर्व शासक परीक्षित थंपुरन से एक प्रतिभाशाली कवि के तौर पर पहचान मिली। थंपुरन ने उन्हें ‘साहित्य निपुण पुरस्कारम’ से सम्मानित किया था।
- उनकी शुरुआती कविताओं में पौराणिक पात्रों और कहानियों को अपनाकर मातृत्व और महिलाओं को शक्तिशाली शख्सियत के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- बालमणि अम्मा (Balamani Amma) ने मलयालम में अपनी कविताएं लिखीं और उनकी रचनाओं को पूरे दक्षिण भारत में पहचान मिली। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएं हैं- अम्मा (मां), मुथस्सी (दादी), और मज़ुविंते कथा (द स्टोरी ऑफ़ द कुल्हाड़ी)।
- दादी साहित्यिक कार्यों के लिए कई पुरस्कारों से नवाजी गई थीं। इनमें सरस्वती सम्मान और भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण भी शामिल हैं। अम्मा की बेटी कमला दास को 1984 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।
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नालापत बालमणि अम्मा का निधन 29 सितम्बर, 2004 को कोच्चि, केरल में हुआ। अम्मा के साहित्य और जीवन पर महात्मा गाँधी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया, जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। अपने पति वी. एम. नायर के साथ मिलकर उन्होंने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया।
अम्मा के जीवन में कविताओं ने अहम् भूमिका निभाई अम्मा ने अपना सम्पूर्ण जीवन लेख और कविताओं को समर्पित किया है, जिसके लिए उन्हें भरपूर सम्मान से नवाजा गया है. ऐसे ही महिलाओं को अम्मा के जीवन से सीखना चाहिए और अपने जीवन को अच्छी धिशा देनी चाहिए,
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