Srishti Shandilya: बहन स्टेज पर ऐसा गाती कि मुझे होती जलन,तीस्ता की मौत के बाद मैं गाने लगी…

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Srishti Shandilya
Srishti Shandilya: बहन स्टेज पर ऐसा गाती कि मुझे होती जलन,तीस्ता की मौत के बाद मैं गाने लगी…

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार ‘पहले मेरे लिए संगीत एक शौक था लेकिन बहन की मौत के बाद ये मेरा मिशन बन गया कि उसकी छोड़ी हुई संगीत की धरोहर को संभालूं और उसका विकास करूं और आगे लेकर जाऊं। पूरी शिद्धत और जूनून से मैं इसमें जुट गई, अब यही मेरी पहचान है।’

दैनिक भास्कर से खास बातचीत में बिहार को लोक-गायिका सृष्टि शांडिल्य (Srishti Shandilya) ने बताया कि ‘संगीत मेरी नसों में दौड़ता है।बचपन से ही मुझे लोक गायन का शौक था। शुरुआत में रियाज भी करती थी लेकिन फिर पढ़ाई पर फोकस किया। लाइफ ने तगड़ा यू टर्न लिया और मैंने अपनी बहन को खो दिया। संगीत की विरासत संभालने के लिए मैंने दोबारा गाना शुरू किया।’

चौथी कक्षा से ही मेरी संगीत में विशेष रुचि थी, दरअसल पिता जी म्यूजिक टीचर थे। वो बच्चों को संगीत की शिक्षा देते। उन्हें देख-देख कर मैं भी खूब गाने गाती लेकिन बाद में रुझान पढ़ाई की तरफ हो गया।’

तीस्ता की मौत मुझे स्टेज पर लेकर आई

मेरी छोटी बहन तीस्ता पिता जी के साथ स्टेज शेयर करती थी। गायन की व्यास शैली में तीस्ता जब स्टेज पर परफॉर्म करती तो लोगों की आंखों में आंसू आ जाते। पिता की कहते कि तीस्ता जब गाती है तो तुम बैकग्राउंड में कोरस गा दो, जिस पर मेरा थोड़ा मन-मुटाव भी हुआ कि गाऊंगी तो स्टेज पर ही। 2018 में तीस्ता काफी बीमार हुई और हॉस्पिटल में एडमिट की गई। इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

मैं उठाई संगीत की धरोहर संभालने की जिम्मेदारी

व्यास शैली में ज्यादातर पुरुष ही परफॉर्म करते हैं। पूरे बिहार में तीस्ता ‘व्यास शैली’ में परफॉर्म करने वाली पहली लड़की थी। व्यास शैली में हाथ में इंस्ट्रूमेंट लेकर स्टेज पर लोक गीत के साथ, डांस और फेशियल एक्सप्रेशन देने होते हैं। ‘व्यास शैली’ काफी कुछ तीजन बाई के तरह का लोक गायन है। तीजन बाई पंडवानी करती हैं। तीस्ता के गुजर जाने के बाद पापा काफी खोए-खोए से रहने लगे थे। उनका मन टूट गया था। मैंने हालात को समझा, मैं तीस्ता की छोड़ी हुई धरोहर को संभालूंगी। मैंने लोक गायन की टूटती डोर की तान खींचीं और घर बैठे ही रियाज करने लगी। तीस्ता की शैली को अपनाने के कारण अब मैं ‘तीस्ता शैली’ में गायन करती हूं।

लोक गायक के इतिहास और इससे जुड़ी परम्पराओं को समझा

कोविड काल से पहले मैंने घर पर काफी रियाज किया। 2020 में मैंने प्रॉपर म्यूजिक जर्नी शुरू की। अब तक 2 साल पूरे हो चुके हैं। मैंने फ़िल्मी गीतों से शुरुआत की थी। लेकिन धीरे-धीरे मेरा रुझान लोक गीतों की तरफ हुआ और मैंने लोक गीत गाने शुरू किए। मैं गीतों के मर्म को समझने के लिए बुजुर्ग लोगों के पास गई ताकि गायन को आत्मसात कर सकूं। जब आप गाने को आत्मसात कर लेते हैं तो गाते वक्त आपके दिल से निकलती है। मैंने जाना कि पहले के समय में महिलाएं काम करते वक्त भी गाना गाती थीं ताकि काम को एन्जॉय कर सकें। चक्की पीसने, अचार बनाने जैसे काम करते वक्त महिलाएं लोक गीत गाया करतीं। गर्मियों के मौसम में जब बारिश नहीं होती है तो महिलाएं कुएं या तलाश के पास बैठकर बारिश के देवता इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गाना गाती हैं। इस परंपरा को ‘हरफरौरी’ कहते हैं।

मंच पर बहन को याद कर रोईं

कई दफा बहन स्टेज पर विदाई के गीत पिता के साथ गाती थी। यह तीस्ता और पिता जी दोनों के लिए बेहद भावुक पल होता था। जब मैं आज भी मंच पर परफॉर्म करने के लिए जाती हूं तो लगता है कि मैं तीस्ता को ही जी रही हूं। पिता जी और जानने वाले बताते हैं कि मंच पर जाते ही मेरी आवाज बिल्कुल बदल कर तीस्ता जैसी हो जाती और परफॉरमेंस खत्म होने के साथ ही मैं फूट-फूट कर रोने लगती हूं। मंच पर पापा को देखकर मैं ज्यादा भावुक हो जाती हूं, कई बार म्यूजिक रुकवाना पड़ता है।

कई जगह किए स्टेज शो, तीस्ता शैली में करती हूं परफॉर्म

मैंने दिल्ली, बिहार में कई जगह जैसे पटना, सासाराम, मुंबई में कई स्टेज शो किए हैं। यहां मैंने गायन की लोक शैली को ही परफॉर्म किया। मेरा होम टाउन छपरा है। स्टेज शो के दौरान मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि लोक गीत ही गाऊं। मैं दिसंबर में बिहार के सासाराम में ‘तीस्ता शैली’ और लोक गीत पर परफॉर्म करूंगी।

जिंदगी के कड़वे अनुभवों से ली सीख

जिंदगी बहुत कुछ सिखा जाती है। मैं काफी इमोशनल थी। छोटी-छोटी बातों पर रोने लगती थी। मेरी जर्नी काफी उतार चढ़ाव भरी रही है। मेरी मां को आर्थराइटिस है, कमजोरी की वजह से उनका वजन मात्र 17 किलो रह गया था। पढ़ाई के लिए मैं बाहर गई थी। लेकिन मां की इस हालत की वजह से मैंने वापस आने का फैसला लिया। इसके बाद बहन गुजर गई।

जो लोग देते थे ताने आज देते हैं मेरा उदाहरण

तीस्ता के जाने के बाद मैंने खुद में काफी बदलाव लिए और घर वालों को यह साबित कर दिया कि इंसान जब निश्चय कर लेता है तो कुछ भी हासिल कर सकता है। कल जो लोग ताने कसते थे वो आज अपने बच्चों को मेरा उदाहरण देते हैं कि देखो उसने कैसे खुद को संभाला और अपनी नई पहचान बनाई।

चंचल और बातूनी हूं, काम के वक्त सिर्फ काम

मैं काफी नॉटी हूं। एक बार की बात है मैं हॉस्टल से घर आई, सलाद खाने का मन था तो बगल वाले के खेत से टमाटर लेकर फ्रेश सलाद बनाया। बाद में लोगों ने पापा से शिकायत की कि आपकी बेटी ने शरारत की और मेरे पेड़ खराब कर दिए। मैं खेल में गई और मैंने वाकई सारे टमाटर तोड़ डाले। लेकिन मैं अपने गायन में अपने नटखट स्वभाव की झलक नहीं आने देती हूं। जो लोग मुझे कम जानते हैं उनके लिए मैं बेहद शांत और सहज हूं। लेकिन जो मेरे करीबी हैं वो मेरे दोनों पहलुओं को जानते हैं कि काम के वक्त मैं काम पर फोकस रखती हूं और बाकि वक्त मैं वही चंचल और बातूनी लड़की हूं।