लड़कियों के मोबाइल रखने पर प्रतिबंध लगाने वाले लोग कौनसी सदी के है?

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ठाकोर Thakor
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क्या हम 21वीं सदी में ही जी रहे है यदि हाँ तो फिर ऐसे नियम क्यों बनाये जा रहे है जो लड़का-लड़की में भेदभाव पैदा करता है और वो भी स्वतंत्र भारत में. जहाँ अलग-अलग जाति के लोग अपना अलग सविंधान बनाने की कोशिश में है. ऐसा ही कुछ हुआ है गुजरात के ठाकोर (Thakor) जाति की लड़कियों के साथ क्योंकि उनको अब मोबाइल रखने की इजाजत नहीं है.

आज के बढ़ते हिंदुस्तान में महिलाओं और पुरुषों में समानता की बात कही जाती है और कई क्षेत्रों में तो महिलाएं, पुरुषों से आगे भी हैं. परन्तु बढ़ते हिंदुस्तान का उदाहरण बन चुके गुजरात के बनासकांठा से हैरान करने वाली खबर सामने आई है. दांतीवाड़ा में ठाकोर (Thakor) समुदाय द्वारा एक नया नियम बनाया गया है जिसमें अविवाहित लड़कियों के मोबाइल फोन रखने पर प्रतिबंध लगाया है. रविवार को जलोल गांव में हुई समुदाय की मीटिंग में कुछ फैसले लिए गए जिन्हें गांव के लोगों द्वारा संविधान की तरह माना जाता है. नए नियमों के मुताबिक अविवाहित लड़कियों को फोन नहीं दिया जाएगा और यदि कोई लड़की इस नियम को तोड़ती है तो इसे अपराध माना जाएगा. सजा के तौर पर लड़की के पिता से 1.50 लाख रुपए लिए जाएंगे.

मीडिया सूत्रों की माने तो जिला पंचायत सदस्य जयंतीभाई ठाकोर ने कहा, ‘रविवार को हमारे समुदाय ने आपस में मुलाकात की और इसमें यह फैसला लिया गया कि विवाह में होने वाले अतिरिक्त खर्चों(डीजे, पटाखे) को रोका जाना चाहिए. हम इससे बचत कर सकते हैं. हमने मोबाइल और उसकी सजा पर जो चर्चा की थी, उसे लागू नहीं किया था. 10 दिनों के बाद अविवाहित लड़कियों को फोन नहीं देने के मामले में चर्चा के लिए मीटिंग होगी.’ ग्रामीणों ने तय किया है कि अगर कोई लड़की अपने परिवार की इच्छा के बिना शादी करती है तो यह अपराध माना जाएगा.

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इधर ठाकोर समुदाय के नेता और पूर्व कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर (Alpesh Thakor) ने इस मुद्दे पर कहा, ‘शादी में खर्चों को कम करने के लिए नियम अच्छे हैं लेकिन अविवाहित लड़कियों को फोन ना रखने देने संबंधी नियम में कुछ समस्या है. अगर वे ऐसा नियम लड़कों के लिए भी बनाएं तो यह अच्छा होगा. मैं लव मैरिज के लिए बनाए नियम पर कुछ नहीं कह सकता, मेरी खुद की भी लव मैरिज ही हुई थी.’

अब बात यह है की हिन्दुस्तान में हजारों जातियां है और सभी अपने अपने सविंधान बनाने लगे तो भारतीय सविंधान का क्या होगा और क्या सविंधान के समानता के नियम की भी धज्जियाँ इसी तरह से उड़ती रहेगी.
आज भी यह नियम सिर्फ लड़कियों के लिए ही बनाये जा रहे है इससे पता चलता है कि हम 16वीं व 17वीं सदी में जी रहे है. क्या ये लोग यह साबित करने की कोशिश कर रहे है की लड़कियां मोबाइल से गलत व असमाजिक गतिविधियों को अंजाम देती है और इसी के साथ चुपचाप देखती हमारी सरकारें है जो किसी समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती है.