तक्षशिला आर्केड में लगी आग में बच्चों की मौत का प्रशासन कितना जिम्मेदार?

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तक्षशिला आर्केड Takshashila Complex
Takshila Fire (Pic-IndiaTv)

गुजरात के सूरत का एक दर्दनाक हादसा पूरे देश को झखझोर के रख चूका है मरने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 20 से ज्यादा हो चुकी है। अवैध चल रही कई संस्थानों में इस तरह की घटनाएं होना कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि मुनाफाखोरी इतनी ज्यादा बढ़ गई है की लोग मासूमों की जान से भी खेल जाते है।

बात यह हुई कि तक्षशिला आर्केड (Takshashila Complex) में जब आग लगी तो चौथी मंजिल पर चल रही फैशन क्लासेस के सभी स्टूडेंट्स को पता तक नहीं चला। इसके बाद जब चौथी मंजिल तक धुंआ पहुंचा तो स्टूडेंट्स में भगदड़ मच गई। तब तक बाहर निकलने के सारे रास्ते जाम हो चुके थे।
आग से बचने का जब कोई रास्ता ही नहीं बचा तो ऐसे में बच्चों ने एक-एक कर बालकनी से कूदना शुरू कर दिया। 13 छात्र-छात्राएं गिरते हुए नीचे आए, परन्तु इनमें से 3 की मौत हो गई।

जैसे ही आग लगी तो लोगों ने फायर ब्रिगेड सूचना को दी। परन्तु इसके बाद भी दमकल को पहुंचने में आधा घंटा लग गया। तब तक आग पूरी तरीके से तीसरे और चौथे फ्लोर के रास्ते को बंद कर चुकी थी और बच्चे फंस चुके थे। वहां मौजूद लोगों के अनुसार शुरुआत में केवल 6 टैंक लेकर पहुंची फायर की टीम ने 20 मिनट तो अपने संसाधनों को तैयार करने में लगा दिए। उसके बावजूद पानी की बौछार आग तक नहीं पहुच रही थी, इसलिए आग पर काबू ही नहीं पाया जा सका।

प्रशासन जिम्मेदारी से दूर
इस तरह से चलने वाले संस्थानों के लिए प्रशासन अपने आप पर कितनी जिम्मेदारी लेता है यह पता इसी से चल जाता है कि कई कोचिंग में किसी भी तरह की सुरक्षा की सुविधा नहीं है यहाँ तक कई कंपनियों में महिला कर्मियों के लिए भी कोई सुरक्षा के इंतजाम नहीं है।

बच्चों की मौत के प्रमुख कारण
तक्षशिला आर्केड (Takshashila Complex) में अवैध तरीके से चल रहे फैशन इंस्टीट्यूट के साथ ही फिटनेस जिम और महिलाओं के लिए नर्सिंग होम भी चल रहा है। लोगों के अनुसार शॉपिंग सेंटर में आने-जाने का रास्ता एक ही है। शुक्रवार को शॉर्ट सर्किट की वजह से कोचिंग सेंटर में जाने के रास्ते में ही आग भड़क उठी। लोग बुरी तरह फंस चुके थे, जबकि तीसरे और चौथे फ्लोर पर अलग-अलग कोचिंग सेंटर में मौजूद लगभग 56 छात्रों को इस बात की भनक तक नहीं लगी।

बिना संसाधन पहुंच गई दमकल की गाड़ियां
दमकल की लगभग 25 से ज्यादा गाड़ियां मौके पर पहुंची, लेकिन टैंकों में पर्याप्त पानी तक नहीं था। इससे भी बुरी बात आग की जगह तक पहुंचने के लिए गाड़ियों में लगाए गए लैडर ही काम नहीं कर रहे थे। फायर टीम के पास चौथे मंजिल से नीचे गिर रहे बच्चों को पकड़ने के लिए भी कोई संसाधन नहीं था। इनसे अच्छा तो सुरेश मौर्य ने फायर टीम के साथ पाइप लेकर आगे वाले रास्ते में बौछार करने लगे। पांच बच्चों को बाहर निकाला। तथा अश्विन भाई ने बताया कि बच्चों की चीख सुनकर वे फायर प्रूफ सूट पहनकर 15 बच्चों को बाहर निकाला, पर तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

दैनिक भास्कर के अनुसार हॉस्पिटल में भर्ती रेंसी ने बताया कि घटना के समय वे क्रिएटर इंस्टीट्यूट में क्लास में थीं। क्लास में 22 लोग थे। दो-तीन छोटे बच्चे भी थे। कॉम्प्लैक्स में एंट्री-एग्जिट एक ही है। इसलिए धुएं और लपटों से सांस लेना भी मुश्किल हो गया था। हमारी इंस्टीट्यूट के इंस्ट्रक्टर बचने के लिए खुद ही कूद गए थे। हमने सोचा कि अंदर रहे तो जलकर मरेंगे, कूदे तो हाथ-पैर ही टूटेंगे शायद जान बच जाए।