सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में देश में बच्चा गोद लेने की लंबी प्रक्रिया पर सवाल उठाए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा है कि कोई भी युवा कपल बच्चा गोद लेने के लिए 3-4 साल का इंतजार नहीं कर सकता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पूरी प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कहा है।
देश में लाखों की संख्या में अनाथ बच्चे हैं और हैरत की बात यह है कि ऐसे बच्चों को गोद लेने के इच्छुक मां-बाप और सिंगल मदर, सिंगल फादर की संख्या भी बहुत है। मगर समस्या देश में कानूनी तौर पर गोद लेने की लंबी प्रक्रिया का होना है। बच्चा गोद लेने वाले लोगों को कानूनन मां-बाप बनने के लिए 3 से 4 साल का वक्त लगना बहुत ज्यादा होता है।
आइए, सबसे पहले सरोगेसी और गोद लेने से जुड़े इन दो केस पर गौर करते हैं।
केस-1
साउथ इंडस्ट्री के जाने-माने स्टार कपल एक्ट्रेस नयनतारा और डायरेक्टर विग्नेश शिवन इसी साल 9 जून को शादी के बंधन में बंधे और फिर महज 4 महीने के अंदर दो जुड़वा बच्चों के माता-पिता भी बन गए। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने फैंस को यह खुशखबरी देकर चौंका दिया था।
मगर दोनों स्टार्स के फैंस, सोशल मीडिया यूजर्स और यहां तक कि राज्य सरकार को उनका इतनी जल्दी पेरेंट्स बन जाने का राज क्या था, समझ नहीं आया। आखिरकार, बात खुली तो पता चला कि दोनों सरोगेसी के जरिए माता-पिता बने हैं। लेकिन सरोगेसी को लेकर वे जल्दी ही विवादों में घिर गए। क्योंकि भारत में सरोगेसी 2021 से प्रतिबंधित है।
मामले की गंभीरता को समझते हुए तमिलनाडु सरकार ने इसकी जांच के लिए पैनल बनाया। पैनल ने गुरुवार यानी 27 अक्टूबर को कपल को क्लीन चिट देते हुए कहा कि इस मामले में सरोगेसी का कोई नियम नहीं तोड़ा गया है। पैनल की जांच की रिपोर्ट में पाया गया है कि सरोगेट मां ने कानून प्रतिबंधित होने से पहले 2021 में नयनतारा और विग्नेश के साथ एग्रीमेंट किया था। जबकि, इस साल मार्च में बच्चों के सरोगेट महिला के भ्रूण में रखा गया। इस तरह अक्टूबर में बच्चों का जन्म हुआ।
सरकार से क्लीन चिट पाने के बाद विग्नेश ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की, जिसमें उन्होंने मेंटल पीस की बात कही है। पैनल की जांच के दौरान पता चला है कि कपल ने साल 2016 में ही कोर्ट मैरिज कर ली थी। इतना ही नहीं कपल ने सरोगेसी नियम में बदलाव के पहले अपना सरोगेसी प्रोसेस शुरू कराया था। इस वजह से उन पर सभी आरोप निराधार साबित हुए।
केस-2
कोरियोग्राफर संदीप सोपारकर लोकप्रियता के मामले में कई एक्टर और एक्ट्रेस से पीछे खड़े नजर आते हैं। लेकिन उन्होंने महज 40 साल की उम्र में लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर एक बच्चे को गोद लिया और उस बच्चे का नाम अर्जुन रखा। उस समय तक उन्होंने शादी नहीं की थी। इसके बाद से वे सुर्खियों में आने लगे। संदीप एक फेमस कोरियोग्राफर के साथ-साथ डांस ट्रेनर भी हैं। उन्होंने कई डांस शो में बतौर जज भी काम किया है। आपको बता दें कि साल 2009 में इन्होंने जेसी रंधावा से शादी की थी, लेकिन 2016 में दोनों अलग हो गए। अब एक बार फिर से संदीप सोपारकर ने दूसरे बच्चे कबीर को गोद लिया है जिसके लिए कानूनी प्रक्रिया 2021 में शुरू हुई थी। इसी के साथ संदीप सोपारकर ऐसे पहले भारतीय बन गए हैं जो कि 2 बच्चों को गोद लेने वाले सिंगल फादर हैं।
ये दो केस ऐसे हैं, जिनसे सरोगेसी और गोद लेने की अहमियत के बारे में कुछ हद तक समझा जा सकता है।
यहां इस ग्राफिक के जरिए समझते चलें कि इस समय देश में गोद लेने की मौजूदा प्रक्रिया क्या है-
अब हम आपको बताते हैं कि देश में बच्चों के एडॉप्शन की पूरी प्रॉसेस क्या है? भारतीय बच्चों को कौन एडॉप्ट कर सकता है?
अनाथ बच्चों की तीन कैटेगरी होती हैं
हमारे देश में बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और कठोर है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 के तहत जब एडमिनिस्ट्रेशन या सरकारी एजेंसी को कोई बच्चा मिलता है तो उसे अगले 24 घंटे के अंदर ‘जिला बाल कल्याण समिति’ (CWC) के सामने पेश किया जाता है। इसके बाद बाल कल्याण समिति अनाथ, छोड़े हुए और लावारिस की कैटेगरी तय करके बच्चे के प्रोटेक्शन के ऑर्डर देती है।
किस घर में जाएगा बच्चा, इसे भी जांचा जाता है
ऑर्डर जारी होते ही उस बच्चे को सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) की वेबसाइट पर रजिस्टर्ड किया जाता है, लेकिन इस दौरान वो ‘नॉट फॉर एडॉप्टेबल’ कैटेगरी में रहता है यानी इस बच्चे को तुरंत गोद नहीं लिया जा सकता। बच्चे की मेडिकल रिपोर्ट तैयार की जाती है और वो किस घर में जाएगा, उसकी सारी जानकारी CARA के अधिकारी जुटाते हैं। इसके बाद ही बच्चे को गोद लेने वाले पेरेंट्स को कानूनी तौर पर बच्चा सौंपा जाता है।
गोद लेने के लिए बच्चे का कानूनी तौर पर ‘फ्री’ होना जरूरी
CARA के जरिए गोद दिए जाने वाले बच्चों का ‘जिला बाल कल्याण समिति’ द्वारा लीगल फ्री होना जरूरी है। इसके लिए एक तय प्रक्रिया है। 2 साल तक की उम्र के बच्चों को अधिकतम 2 महीने में और 2 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को 4 माह में लीगली फ्री करार दिया जाता है। इस बीच एजेंसी बच्चे के माता-पिता और परिजनों का पता लगाने का हरसंभव प्रयास करती है। घरवालों का पता नहीं चलने पर बच्चे को लीगली फ्री मानकर CARA की वेबसाइट पर एडॉप्शन के आवेदन के लिए अवेलेएबल किया जाता है।
विदेशी कपल को इंडियंस के बाद मिलता है मौका
भारतीय बच्चे विदेशी कपल को सीधे एडॉप्शन के लिए नहीं दिए जा सकते। CARA पहले भारतीय और NRI कपल को बच्चे को गोद लेने का मौका दिया जाता है। 7 दिन में दो बार मंगलवार और शुक्रवार को ऑनलाइन वेबसाइट के जरिए ये मौके मिलते हैं।
अगर 5 साल से कम उम्र के बच्चे को 60 दिन बाद भी कोई इंडियन एडॉप्ट नहीं करता, यानी 16 बार कोशिश के बाद भी भारतीय दंपती उस बच्चे को गोद नहीं लेता तो विदेशी दंपती को यह अवसर दिया जाता है। बच्चा 5 साल से बड़ा है तो 30 दिनों बाद, मतलब 8 रिजेक्शन और दिव्यांग बच्चे को 15 दिन, मतलब 4 रिजेक्शन के बाद विदेशी दंपती को यह अवसर मिलता है।
एक बार इस ग्राफिक के जरिए विदेशी कपल द्वारा गोद लेने के आंकड़ों पर भी गौर कर लीजिए-
गोद लेने वाले को दिखाए जाते हैं 3 बच्चे, एक को चुनना होता है
CARA की वेबसाइट पर बच्चे को एडॉप्ट करने के लिए एप्लाई करने वाले आवेदक का प्राथमिकता के अनुसार नंबर आता है। हर आवेदक को 3 बच्चों का रेफरल यानी विकल्प मिलता है। अगर वो 3 बच्चे में से किसी एक को एडॉप्ट नहीं कर पाता तो उसकी प्राथमिकता जीरो हो जाती है। इसके बाद उसे फिर से में नंबर आने पर गोद लेने का मौका मिलता है।
बच्चे से 25 साल ज्यादा होनी चाहिए गोद लेने वाले दंपती की उम्र
भारतीय बच्चों को इस देश के नागरिक, NRI और हेग कन्वेंशन के मेंबर कंट्री के कपल या सिंगल पेरेंट बच्चे को गोद ले सकता है। तीनों कैटेगरी के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई CARA ने अलग-अलग नियम तय किए हैं।
सिंगल पेरेंट या कपल लड़का या लड़की किसी को भी एडॉप्ट कर सकते हैं।
अगर कोई कपल बच्चे को एडॉप्ट कर रहा है तो उस कपल की शादी हुए 2 साल पूरे होने चाहिए।
बच्चे और कपल की उम्र में कम से कम 25 साल का फर्क हो।
उन्हें पहले से कोई जानलेवा या संक्रमित बीमारी नहीं हो।
एडॉप्शन के लिए माता-पिता दोनों की सहमति जरूरी है।
सिंगल पेरेंट के लिए गोद लेने की हैं अलग तरह की शर्तें
अगर कोई अकेली महिला किसी बच्चे को एडॉप्ट करना चाहती है तो वह लड़का या लड़की में से किसी को भी एडॉप्ट कर सकती है, लेकिन पुरुष सिर्फ लड़के को एडॉप्ट कर सकता है। गोद लेने वाले दंपती का आर्थिक रूप से मजबूत होना जरूरी है। हालांकि, पुरुष और गोद लेने वाले बच्चे में 21 साल से ज्यादा का अंतर है तो लड़की को भी एडॉप्ट कर सकता है।
3 कैटेगरी के बच्चों को नहीं लेना चाहते गोद
UNICEF के मुताबिक, 2020 में 2,27,518 बच्चे चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस में थे। इनमें से 1,45,788 बच्चों को उनके नजदीकी रिश्तेदारों को सौंप दिया गया। ऐसा तब हुआ जब महामारी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने यह दिशा-निर्देश दिए। लेकिन अभी भी लाखों की संख्या में बच्चे चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस में जीवन बिता रहे हैं।
कारा की पूर्व चेयरपर्सन अलोमा लोबो के मुताबिक, अनाथ बच्चों में भी तीन कैटेगरी ऐसी हैं जिनको गोद लेने के लिए कम ही लोग तैयार होते हैं। पहली कैटेगरी में ज्यादा उम्र के बच्चे आते हैं जिन्हें कोई अपनाना नहीं चाहता। दूसरी कैटेगरी में ऐसे बच्चे हैं जिनके रिश्तेदारों या नातेदारों का पता होता है। और तीसरी कैटेगरी में दिव्यांग बच्चे आते हैं जिनका कोई भी अभिभावक बनना नहीं चाहता।
अब यहां इस ग्राफिक के जरिए जान लीजिए देश में पिछले 10 साल में गोद लेने वाले लोगों के आंकड़ों पर-
सुधार की जरूरत क्यों?
पिछले साल अक्टूबर में गोद लेने वाले और ले चुके करीब 300 अभिभावकों ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पत्र लिखा था कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में सुधार किया जाए। सबसे बड़ा मुद्दा ऐसे मामलों में ज्यादा समय लगने का है। बाल कल्याण समितियों का मानना है कि अनाथ बच्चों को अपनाए जाने के लिए कानूनी दांव-पेंच कम होने चाहिए।
गोद लेने की प्रक्रिया पर याचिकाकर्ताओं की मांग
गोद लेने के कानूनी तौर-तरीके को लेकर याचिकाकर्ताओं ने दो तरह की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की हुई हैं।
पहली, इस साल अप्रैल में मुंबई स्थित एनजीओ ‘द टेंपल ऑफ हीलिंग’ के संस्थापक पीयूष सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर गुहार लगाई है कि गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस बाबत केंद्र सरकार के महिला व बाल विकास मंत्रालय को कई बार पत्र दिया गया कि गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जाए लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। अर्जी में कहा गया है कि जो आंकड़े उपलब्ध हैं उसके तहत सिर्फ 4 हजार बच्चों का एडॉप्शन हो पाता है। पिछले साल कोविड के दौरान सरकार ने स्कीम में कुछ ढिलाई की थी, उसे जारी रखना चाहिए।
दूसरी, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में गोद लेने के मुद्दे पर तीन याचिकाएं दायर की हैं। उन्होंने इन याचिकाओं में मांग की है कि उत्तराधिकारी तय करने, तलाक लेने और बच्चा गोद लेने के लिए नियम को सभी धर्मों के लिए एक जैसा बनाए जाए। हालांकि, केंद्र सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर इस मुद्दे पर सरकार को निर्देश देने पर आपत्ति दर्ज की है।