केरल के कोच्चि में खौफनाक नर बलि के मामले ने लोगों को सन्न कर दिया. इस खूनी साजिश के सूत्रधार डॉक्टर दंपति और तांत्रिक के बारे में अब ऐसे-ऐसे खुलासे हो रहे हैं कि पुलिस भी हैरान है. पुलिस का कहना है कि आरोपी तांत्रिक ना सिर्फ एक साइकोकिलर है, बल्कि वो एक सीरियल रेपिस्ट भी है. एक बार तो उसने एक 75 साल की बुजुर्ग महिला के साथ भी रेप करने की कोशिश की थी. यही नहीं आरोपी लोगों को सोशल मीडिया पर नर बलि के फायदे तक गिनाता था.
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार दिल दहला देने वाली ये घटना केरल में सामने आई है. यहां के पथानामथिट्टा में महिलाओं की बलि दी गई. इस मामले में पुलिस ने एक दंपति समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. दोनों महिलाओं की बलि दंपति ने वित्तीय समस्या से निपटने और जीवन में समृद्धि लाने के लिए दी. बताया जा रहा है कि आरोपी मोहम्मद शफी ने उनसे महिलाओं की बलि देने के लिए कहा था.
पुलिस ने बताया कि पहली महिला 26 सितंबर से गायब थी. दूसरी की हत्या जून में हुई. पुलिस की मुताबिक, बलि देने से पहले महिलाओं को बुरी तरह टॉर्चर किया गया था. एक महिला के स्तन काटे गए थे और दूसरी के शरीर को 56 टुकड़ों में काट दिया गया था. मामले में मोहम्मद शफी के अलावा भगावल सिंह और उसकी पत्नी लैला को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
देश के सबसे पढ़े-लिखे राज्य में अंधविश्वास अभी भी कितना हावी है, ये इस घटना ने बता दिया. अंधविश्वास और जादू-टोने से हालात यहां इतने भयावह हैं कि इसके खिलाफ कानून बनाने की मांग फिर से उठने लगी है. केरल में तीन साल पहले 2019 में बिल बना भी था, लेकिन विधानसभा में पेश नहीं हो सका. इसमें काला जादू और मानव बलि रोकने के प्रावधान थे.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़े बताते हैं कि जादू-टोने ने 10 साल में एक हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. 2012 से 2021 के बीच देशभर में 1,098 लोगों की मौत का कारण जादू-टोना ही था.
क्या देश में इसे रोकने का कोई कानून है?
फिलहाल अंधविश्वास, काला जादू, जादू-टोना या मानव बलि से निपटने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं है जो देशभर में लागू होता हो. हालांकि, इंडियन पीनल कोड (IPC) की कुछ धाराएं हैं जिनमें ऐसे अपराध के लिए सजा का प्रावधान है. अगर मानव बलि दी जाती है तो धारा 302 (हत्या की सजा) के तहत सजा दी जाती है.
इसके अलावा, धारा 295A के तहत भी केस दर्ज किया जा सकता है. ये धारा तब लगाई जाती है जब धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर कोई काम किया जाता है.
तो क्या फिर कोई कानून नहीं है?
काला जादू या जादू-टोना या अंधविश्वास से निपटने के लिए भले ही कोई केंद्रीय कानून नहीं है लेकिन कई राज्य ऐसे हैं जहां इन्हें लेकर कानून हैं. राज्यों में इसे लेकर अलग-अलग सजा के प्रावधान हैं. इन कानून में अंधविश्वास या काला जादू की परिभाषा भी नहीं है. ये कानून सिर्फ ऐसी प्रथाओं के अपराधीकरण की बात करते हैं जो दशकों से चली आ रहीं हैं.
माना जाता है कि अंधविश्वास और काला जादू जैसी प्रथा की जड़ें धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हैं इसलिए सरकारें उनके खिलाफ कानून लाने से बचती हैं.
किस राज्य में क्या है कानून?
बिहार देश का पहला राज्य है जहां जादू-टोने के खिलाफ सबसे पहले कानून लाया गया था. यहां 1999 से कानून है. ये कानून काला जादू, जादू-टोना, डायन प्रथा पर रोक लगाता है. ऐसा ही कानून झारखंड में भी है.
साल 2015 में छत्तीसगढ़ सरकार टोनाही प्रताड़ना निर्वारण कानून लेकर आई थी. ये कानून ऐसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान करता है, जिसमें जादू-टोने के जरिए किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाया गया हो. ये कानून झाड़-फूंक, टोना-टोटका को भी रोकता है. इसके तहत 5 साल तक की कैद की सजा हो सकती है.
ओडिशा में भी 2013 से इसे लेकर कानून है. ये कानून डायन शिकार और जादू-टोना करने से रोकता है. इसके तहत अगर किसी प्रथा से किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है, तो ऐसा करने वाले को 1 से 3 साल की कैद की सजा हो सकती है.
महाराष्ट्र में 2013 से इसे लेकर कानून है. महाराष्ट्र का कानून जादू-टोना, काला जादू, मानव बलि और बीमारियों के इलाज के लिए तंत्र-मंत्र या लोगों के अंधविश्वास का फायदा उठाने के लिए काम करने वाले को सजा देता है. इस कानून के तहत 6 महीने से लेकर 7 साल तक की सजा हो सकती है. साथ ही 50 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. हालांकि, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने अगस्त में दावा किया था कि इस कानून के नियम बनने अभी बाकी हैं.
महाराष्ट्र की तर्ज पर ही कर्नाटक सरकार 2020 में इसके खिलाफ कानून लेकर आई थी. ये कानून काला जादू, जादू-टोना और अंधविश्वास के नाम पर लोगों को नुकसान पहुंचाने वाले 16 कृत्यों पर प्रतिबंध लगाता है. ऐसा करने पर आईपीसी की धारा के तहत कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है. राजस्थान और असम में भी 2015 से इसके खिलाफ कानून हैं.
क्या केरल में कोई कानून है?
एनसीआरबी के मुताबिक, 2021 में देशभर में काला जादू या जादू-टोने की वजह से 68 लोगों की मौत हुई थी. केरल में किसी भी व्यक्ति की मौत इस मकसद से नहीं हुई थी.
केरल में काला जादू और अंधविश्वास रोकने के लिए कानून बनाने की दो बार कोशिश की गई. पहली बार 2014 में एक वर्किंग ड्राफ्ट तैयार हुआ था, लेकिन ये ठंडे बस्ते में चला गया.
इसके बाद 2019 में भी बिल बनाया गया, लेकिन ये विधानसभा में पेश तक नहीं हुआ. इस बिल में दोषी व्यक्ति को 7 साल तक की कैद और 50 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान था.