हिन्दू धर्म मे नवरात्रि को हर्षोल्लास से पर्व के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि (navratri) में विशेष रूप से आदिशक्ति दुर्गा की पूजा की जाती है। यह पर्व धूमधाम से पूरे 9 दिन तक मनाया जाता है और देवी के नौ रूपो की पूजा की जाती है।
नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं – चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि (navratri) गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्री के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता है।
धर्म ग्रंथो के अनुसार कन्याऐं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। इसलिए नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है इसलिए नवरात्र के अंतिम दिन विधि- पूर्वक कन्या पूजन करना भी अति आवश्यक माना गया है। लेकिन कन्या पूजन सही विधि पूर्वक हो तभी लाभप्रद होता है
इस प्रकार करे नवरात्र में कन्या पूजन –
- कन्या पूजन में 2 से लेकर 10 साल तक की कन्याओं की ही पूजा करनी चाहिए। इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं की पूजा वर्जित है।
कन्या पूजन के लिए सबसे पहले व्यक्ति तो प्रातः स्नान कर विभिन्न प्रकार का भोजन(पूरी ,हलवा, खीर, भुना हुआ चना आदि) तैयार कर लेना चाहिए। सभी प्रकार के भोजन में से पहले मां दुर्गा को भोग लगाना चाहिए।
भोजन करना से पहले कन्याओं का पैर शुद्ध पानी से धोकर उन्हें भोजन के लिए साफ स्थान पर आसन बिछाकर बिठाना चाहिए।
- ऊँ कौमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं की पंचोपचार पूजा करें।मां दुर्गा को जिस भोजन का भोग लगाया हो उसे सर्वप्रथम प्रसाद के रूप में कन्याओं को खिलाना चाहिए। इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें।
भोजन के पश्चात कन्याओं के पैर धुलाकर हाथों में रक्षा सूत्र बांधकर माथे पर रोली का टीका लगाना चाहिए तथा हाथो में दक्षिणा देनी चाहिए और हाथो में फूल लेकर प्राथना करनी चाहिए
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
- तब वह फूल कन्या के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।
कन्या पूजन का महत्व-
श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के तृतीय स्कंध के अनुसार, 2 वर्ष की कन्या को कुमारी कहते हैं। इसकी पूजा से गरीबी दूर होती है।
तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति कहते हैं। इसकी पूजा से धर्म, अर्थ व काम की प्राप्ति होती है। वंश आगे बढ़ता है।
चार साल की कन्या को कल्याणी कहते हैं। इसकी पूजा से सभी प्रकार के सुख मिलते हैं।
पांच साल की कन्या को रोहिणी कहते हैं। इसकी पूजा से रोगों का नाश होता है।
छ: साल की कन्या को कालिका कहा गया है। इसकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है।
सात साल की कन्या को चण्डिका कहते हैं। इसकी पूजा से धन व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
आठ साल की कन्या को शांभवी कहते हैं। इसकी पूजा से दुख दूर होते हैं।
नौ साल की कन्या को दुर्गा कहते हैं। इसकी पूजा से परलोक में सुख मिलता है।
दस साल की कन्या को सुभद्रा कहा गया है। इसकी पूजा से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
मान्यता है कि नवरात्र (navratri) की पूजा व व्रत कन्या पूजन के बिना अधूरी होती है। अंतिम दिन जो भी श्रद्धा भाव से कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोजन करवाता है उसकी सारे मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। कुछ लोग नौ कन्याओं के साथ भौरों बाबा के रूप में एक छोटे बालक को भी भोजन करवाते हैं।