प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस मनाया जाता है। यह दिवस महान डॉक्टर/चिकित्सक डॉक्टर बिधानचंद्र राय की स्मृति में सम्मान में मनाया जाता है। अजब संयोग है कि 1 जुलाई डॉक्टर बिधान चंद्र राय की जन्मतिथि भी है और पुण्यतिथि भी है. चलिए आज हम बात करते है भारत की पहली महिला डॉक्टर कौन थी जिन्होंने बहुत लोगों की जान बचाते हुए इतिहास बनाया है.
जिस दौर में भारत में महिलाओं की शिक्षा भी किसी सपने से कम नहीं थी, उस दौर में विदेश जाकर डॉक्टर की डिग्री हासिल कर एक मिसाल कायम करने वाली महिला थी आनंदी गोपाल जोशी.
देश में आज शिक्षा का स्तर पहले के मुकाबले काफी सुधर गया है, खासकर महिलाओं की शिक्षा के बारे में। महिलाएं अब जमीन से लेकर आसमान तक हर जगह अपना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं, लेकिन आज से एक सदी पहले लड़कियों का स्कूल जाना सपना देखने जैसे था। उस दौर में क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई भारतीय महिला डॉक्टर बनकर इतिहास रचेगी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी महिला के बारे में जो उस समय की विषम परिस्थितियों में न केवल शिक्षा हासिल की, बल्कि भारत की पहली डॉक्टर बनकर इतिहास रचा। इस महान महिला का नाम है आनंदीबाई जोशी। न्यूयॉर्क के पकिप्सी में एक कब्रिस्तान में एक हेडस्टोन पर लिखा है- आनंदीबाई जोशी MD (1865- 1887), भारत की पहली महिला डॉक्टर।
डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 में पुणे जिले के कल्याण में जमींदारों के एक रूढ़िवादी मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आनंदी जब महज 9 बरस की थी तभी उनकी शादी 25 साल के एक विदुर गोपालराव जोशी से कर दी गई थी। 14 साल की उम्र में आनंदी मां बन चुकी थीं, लेकिन 10 दिनों के भीतर ही उनके नवजात बच्चे की मौत हो गई, बच्चे को खोने के दर्द ने आनंदी को दुखी करने के साथ ही एक लक्ष्य भी दिया, उन्होंने ठान लिया कि वे एक दिन डॉक्टर बनकर रहेंगी। उनके इस संकल्प को पूरा करने में उनके पति गोपालराव जोशी ने भी उनकी पूरी मदद की।
आनंदी के डॉक्टर बनने के फैसले के बाद जाहिर सी बात है कि उनकी राह आसान नहीं रही हुई होगी। उनके अचानक फैसले से रिश्तेदार के साथ-साथ आस-पड़ोस के लोग भी विरोध में खड़े हो गए। लेकिन आनंदी अपने डॉक्टर बनने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए तमाम आलोचनाओं को सहते हुए आगे बढ़ती रही। उनके पति गोपालराव ने उन्हें मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलाकर उनकी पढ़ाई शुरू कराई। जिसके बाद उनके पति का ट्रांसफर कलकत्ता हो गया, जिसके बाद वे कलकत्ता चली गई। जहां पर उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ना और बोलना सीखा। उनके पति ने उन्हें आगे मेडिकल का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया। सन् 1880 में उन्होंने एक प्रसिद्ध अमेरिकी मिशनरी, रॉयल वाइल्डर को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी की रुचि को देखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका में चिकित्सा के अध्ययन की जानकारी मांगी, जहां से जानकारी मिलने पर वो आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई।
यहां आनंदी ने पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा कार्यक्रम में एडमिशन लिया। आनंदीबाई ने साल 1886 में 21 साल की उम्र में एमडी की डिग्री हासिल कर ली, वो एमडी की डिग्री पाने वाली भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। उसी साल आनंदीबाई भारत लौट आईं, डॉक्टर बन कर देश लौटी आनंदी का भव्य स्वागत किया गया था। बाद में उन्हें कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक की नियुक्ति मिली।
आनंदी ने इतनी मेहनत से जिस ज्ञान को अर्जित किया था, उससे वह ज्यादा दिनों तक लोगों की सेवा नहीं कर पाई। किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, भारत की पहली महिला डॉक्टर बनकर कीर्तिमान रचने वाली आनंदीबाई अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस शुरू करतीं उससे पहले ही वे टीबी की बीमारी का शिकार हो गईं। महज एक साल के अंदर ही लगातार बीमार रहने के कारण 26 फरवरी 1887 में महज 22 साल की उम्र में आनंदीबाई चल बसीं। उनके साथ स्नेह का बंधन रखने वाली इंग्लैंड की थियो डीसिया ने गोपालराव से आनंदी की राख भेजने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने पकिप्सी के कब्रिस्तान में अपने परिवार के साथ दफनाया था।
डॉ. बिधानचंद्र राय एक महान चिकित्सक थे, जिन्होंने अपने जीवन में कई लाख मरीजों का इलाज किया और उनकी जान बचाई उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में रहकर पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। कई चिकित्सालयों को अपने अनुभव और सीखों से उनका कद बड़ा कर दिया। वे गांधी जी के निजी चिकित्सक भी रहे,महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे, दूरदर्शी राजनेता और मुख्यमंत्री भी रहे, आजीवन अविवाहित रहे।
दामोदर घाटी और दुर्गापुर इस्पात निगम पश्चिम बंगाल और देश के लिए उनकी बड़ी देन है। ऐसे महान डॉक्टर को याद करने और उन्हें सम्मान देने के लिए ही राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (National Doctor’s day) मनाया जाता है इसकी शुरुआत भारत में 1991 में हुई।
1 जुलाई 1882 में बिहार के पटना जिले में जन्म लेने वाले डॉ बिधानचंद्र राय की मृत्यु 1 जुलाई 1962 को हुई थी। कोलकाता में चिकित्सा शिक्षा पूर्ण करने के बाद डॉक्टर राय ने एमआरसीपी और एफआरसीएच की उपाधि लंदन में प्राप्त की उन्हें 4 फरवरी 1961 को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
1911 में उन्होंने भारत में चिकित्सीय जीवन की शुरुआत की इसके बाद वे कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में व्याख्याता बने। उनकी ख्याति एक शिक्षक और चिकित्सक के रूप में ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महात्मा गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल होने के कारण बढ़ी।
डॉक्टर बिधानचंद्र राय पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री रहे और लगभग 14 जनवरी 1948 से मृत्युपर्यंत तक मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने पश्चिम बंगाल में राजकीय धर्म का भी निर्वहन किया था। आजादी के लिए समर्पित करने वाले, महान चिकित्सक विधान चंद्र राय की अभूतपूर्व सेवाओं को भारत सरकार ने 4 फरवरी 1961 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने 1991 में विधान चंद्र राय के जन्म और मरण दिवस को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के रूप में मनाने का ऐतिहासिक निर्णय भी लिया तब से प्रतिवर्ष 1 जुलाई को “राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस “(National Doctor’s day) मनाया जाता है।
इस दिन देश उन महान चिकित्सा विभूतियों के सम्मान करता है जिन्होंने मेडिकल क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया हो। डॉक्टर विधान चंद्र राय, अद्भुत क्षमतावान और उत्साही चिकित्सक थे। वे निष्काका कर्मयोगी थे। उनमें 80 वर्ष की वृद्धावस्था की उम्र तक युवाओं के जैसा जोश और उत्साह बना रहा। उन्होंने पश्चिम बंगाल में राजकीय धर्म का भी निर्वहन किया था।
डॉक्टर बिधान चंद्र राय, रोगी के चेहरे को पढ़कर, नाड़ी देखकर उपचार करने वाले महान चिकित्सक थे। बिधानचंद्र राय को देश की नाड़ी का भी बाखूबी ज्ञान था। राष्ट्रीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी बहुमुखी सेवाएं थी। देश के औद्योगिक विकास ,चिकित्सा शास्त्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य तथा शिक्षा की उन्नति में उनका अप्रतिम योगदान था।
विधानचंद्र रॉय डॉक्टर के साथ-साथ समाजसेवी, आंदोलनकारी और राजनेता भी थे. वो बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री बने. बिधानचंद्र रॉय ने डॉक्टर के रूप में करियर की शुरुआत सियालदाह से की साथ ही वे सरकारी अस्पताल में डॉक्टर की जिम्मेदारी भी निभाई. आजादी की लड़ाई के दौरान वो असहयोग आंदोलन का हिस्सा भी रहे. शुरुआत में उन्हें लोग महात्मा गांधी, नेहरू के डॉक्टर के रूप में जानते थे. महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा था.
डॉक्टर्स डे कब और कहाँ मनाया जाता है (When and Where Doctors Day is Celebrated)
डॉक्टर्स डे भारत के साथ – साथ कुछ अन्य देशों में भी मनाया जाता है. यह दिवस कब और कहाँ मनाया जाता है यह नीचे दर्शाया गया है –
हमारे देश में 1 जुलाई को मनाया जाता है, जोकि यहाँ के एक महान चिकित्सक की जन्म तिथि के साथ – साथ उनकी मृत्यु की तिथि भी है. उनका नाम डॉ बिधान चंद्र रॉय था.
यहाँ 18 अक्टूबर को छुट्टी के रूप में राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे मनाया जाता है, यह कैथोलिक चर्च सेंट ल्यूक का जन्मदिवस है. जोकि वहां के एक महान डॉक्टर थे.
यहाँ कार्लोस जुआन फिनले के जन्मदिन मनाने के लिए 3 दिसंबर को राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे छुट्टी के रूप में मनाया जाता है. ये क्यूबा के चिकित्सक और वैज्ञानिक थे जिन्होंने पीले बुखार का शोध किया था, और इसके लिए वे पहचाने गये थे.
ईरान में इस दिन को 23 अगस्त के दिन मनाया जाता है जोकि वहां के महान डॉक्टर एविसेना का जन्मदिवस था.
अमेरिका में यह 30 मार्च को मनाया जाता है, जोकि वह दिन है जिस दिन चिकित्सकों की सेवा को सालाना मान्यता प्राप्त होती है. इस दिन को मनाने का विचार डॉ चार्ल्स बी. आलमंड एवं उनकी पत्नी यूडोरा ब्राउन आलमंड को आया था. और यह दिन सर्जरी में सामान्य एनेस्थीसिया के उपयोग की पहली सालगिरह थी. दरअसल 30 मार्च सन 1942 को जेफरसन, जॉर्जिया में डॉ क्रावफोर्ड लॉन्ग ने जेम्स वेनेबल नामक एक मरीज को बेहोश करने के लिए ईथर का उपयोग किया. और बिना दर्द के उनकी गर्दन से ट्यूमर निकाला.
यहाँ 28 फरवरी सन 1955 को डॉक्टर्स डे की स्थापना की. तब से यह इस तारीख को या इसके आसपास की तारीख को मनाया जाता है.
नेपाल देश में भी 4 मार्च के दिन डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. नेपाल मेडिकल एसोसिएशन की स्थपना के बाद, नेपाल ने हर साल इस दिन को आयोजन किया. इस दिन डॉक्टर – रोगी संचार, क्लिनिकल इलाज और समुदाय आधारित स्वास्थ्य प्रचार पर देखभाल के बारे में चर्चा की जाती है.
डॅाक्टर समाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चिकित्सक समुदाय ने कोविड-19 महामारी से लड़ाई में भी अहम भूमिका निभाई है और इस समय भी सभी डॅाक्टर अपनी जान की परवाह किए बगैर देश सेवा में लगे हुए हैं।