Mirabai: विधवापन या कृष्ण भक्ति, मीराबाई पर हुए अत्याचार के कारण ?

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Mirabai
Mirabai: Atrocities were committed on Mirabai absorbed in anti-Krishna devotion of stereotypes, women's freedom and caste discrimination...

भक्ति यह एक ऐसा शब्द है जिसमे बहुत ताक़त है, यह किसी भी प्रकार से हो सकती है। माता पिता के प्रति अपने पति या भगवन के प्रति भक्ति , यह किसी भी रूप में हो सकती है। क्या आपको पता है भारतीय इतिहास में एक ऐसी भी भक्त हुआ करती थी जो भगवन कृष्ण को अपना पति मानते हुए उम्र भर उनकी भक्ति की।

आज हम बात करने वाले है कृष्ण भक्ति में लीन मीराबाई (Mirabai) के बारे में। जी हां , हम उन्हीं मीराबाई (Mirabai) की बात करने वाले हैं जिन्होंने कृष्ण भक्ति में लीन होकर जहर का प्याला तक पी लिया परंतु कभी कृष्ण की भक्ति नहीं छोड़ी। अपने बचपन से अंत समय तक उन्होंने कृष्ण की पूजा की तथा अंत में उन्ही में समा गई।

Mirabai
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मीरा बाई का जन्म व जीवन Birth and life of Mira Bai

मीराबाई (Mirabai) का जन्म 1498 ई. में मेड़ता के राठौड़ राव दूदा के पुत्र रतन सिंह के यहां कुड़की गांव, मेड़ता (राजस्थान) में हुआ था। मीरा के पिता रतनसिंह राठौड़ एक जागीरदार थे तथा माता वीर कुमारी थी। मीरा (Mirabai) का पालन पोषण उसके दादा-दादी ने किया। उसकी दादी भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त थी जो ईश्वर में अत्यंत विश्वास रखती थी।

मीरा दादी मां की कृष्ण भक्ति को देखकर प्रभावित हुई। एक दिन जब एक बारात दूल्हे सहित जा रही थी तब बालिका मीराबाई (Mirabai) ने उस दूल्हे को देखकर अपनी दादी से अपने दूल्हे के बारे में पूछने लगी। तो दादी ने तुरंत ही गिरधर गोपाल का नाम बता दिया और उसी दिन से मीरा ने गिरधर गोपाल को अपना वर मान लिया।

मीराबाई (Mirabai) का संपूर्ण बचपन मेड़ता में ही बीता क्योंकि उसके पिता रतन सिंह राठौड़ बाजोली की जागीरदार थे जो मीरा के साथ नहीं रहा करते थे।

मीराबाई के जीवन को समझने के लिए कुछ आसान जानकारी Some easy information to understand the life of Mirabai

नाममीराबाई (Mirabai)
जन्म1498 ई., कुड़की ग्राम, मेड़ता, मध्यकालीन राजपूताना (वर्तमान राजस्थान)
मातावीर कुमारी
पितारतनसिंह राठौड़
पतिराणा भोजराज सिंह (मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र)
पुत्रनहीं
पुत्रीनहीं
धर्महिन्दू
वंश(विवाह के बाद) सिसोदिया
प्रसिद्धि का कारणकृष्ण-भक्त, संत व गायिका
मृत्यु1547 ईस्वी, रणछोड़ मंदिर डाकोर, द्वारिका (गुजरात)
जीवनकाल48-49 वर्ष

मीराबाई का विवाह Mirabai’s marriage

मीराबाई (Mirabai) का विवाह सन 1573 में महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ। परंतु मीराबाई भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को ही अपना पति मानती थी। उनके पति की मृत्यु के बाद कुछ सालों के अंदर ही उनके पिताजी और ससुर जी भी मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ युद्ध में मारे गए।

मीराबाई (Mirabai) के पति की मृत्यु के बाद सती जैसी रहने लगी और धीरे-धीरे वे संसार से अलग हो गई और साधु संतो के साथ भजन करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगी।

मीराबाई की कृष्ण भक्ति Meerabai’s Krishna Devotion

मीराबाई (Mirabai) की भक्ति का मूल आधार श्रद्धा और भक्ति थी. मीरा ने अनेक संतो के साथ सत्संग एवं विचार विमर्श किये. लेकिन किसी एक धारा का अनुगमन नही किया. मीरा सगुण उपासक थी और वह इस पद्दति की श्रेष्ट प्रतिनिधि भी थी.

उनकी भक्ति की शुरुआत कृष्ण के दर्शन करने की इच्छा से होती है, वह कहती है कि ”मै विरहणी बैठी जांगू दुखन लागे नैण” कृष्ण भक्ति की प्राप्ति के बाद वह कह उठती है, पायो जी मैनें रामरतन धन पायो”

“मीराबाई” (Mirabai) का समय सामंतीकाल का चर्मोत्कर्ष समय था. ऐसें समय में रूढ़ियाँ, नारी स्वतंत्रता एवं जाति भेद के विरुद्ध मीराबाई ने बहुत साहस के साथ आवाज उठाइ. मीरा ज्ञान पक्ष के स्थान पर सहज भक्ति को अधिक महत्व देती थी.

वह लोकप्रिय भक्त थी. सामान्यजन मीराबाई से प्रभावित थे. आज भी मीरा के पदों को लोक भजनों के रूप में गाया जाता है.

मीराबाई को मारने के प्रयास Attempts to kill Mirabai

पति की मृत्यु के बाद मीराबाई (Mirabai) की भक्ति दिन-प्रतिदिन और भी बढ़ती गई। वे मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्ण भक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीरा के लिए आनन्द का माहौल तो तब बना, जब उनके कहने पर राजा महल में ही कृष्ण का एक मंदिर बनवा देते हैं। महल में मंदिर बन जाने से भक्ति का ऐसा वातावरण बनता है कि वहाँ साधु-संतों का आना-जाना शुरू हो जाता है।

मीराबाई के देवर राणा विक्रमजीत सिंह को यह सब बुरा लगता है। ऊधा जी भी मीराबाई को समझाते हैं, लेकिन मीरा दीन-दुनिया भूल कर भगवान श्रीकृष्ण में रमती जाती हैं और वैराग्य धारण कर जोगिया बन जाती हैं। भोजराज के निधन के बाद सिंहासन पर बैठने वाले विक्रमजीत सिंह को मीराबाई का साधु-संतों के साथ उठना-बैठना पसन्द नहीं था।

मीराबाई को मारने के कम से कम दो प्रयासों का चित्रण उनकी कविताओं में हुआ है। एक बार फूलों की टोकरी में एक विषेला साँप भेजा गया, लेकिन टोकरी खोलने पर उन्हें कृष्ण की मूर्ति मिली। एक अन्य अवसर पर उन्हें विष का प्याला दिया गया, लेकिन उसे पीकर भी मीराबाई को कोई हानि नहीं पहुँची।

कृष्ण-भक्ति में मीराबाई की रचनाएँ Meerabai’s compositions in Krishna-devotion

  • राग गोविंद
  • गीत गोविंद
  • नरसी जी का मायरा
  • मीरा पद्मावली
  • राग सोरठा
  • गोविंद टीका

मीराबाई (Mirabai) की पदावलियां बहुत प्रसिद्ध रही है। मीराबाई की भक्ति कांता भाव की भक्ति रही है उन्होंने ज्ञान से ज्यादा महत्व भावना व श्रद्धा को दिया।

मीराबाई का निधन Mirabai’s death

मीराबाई (Mirabai) ने मन में ही श्री कृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लिया था। उनका प्रेम उनके प्रति कभी कम नहीं हुआ और भगवान कृष्ण से मिलने की वेदना में उन्होंने कृष्ण जी की मूर्ति के साथ द्वारका जी सन 1547 में अपने प्राण त्याग दिए।

मीराबाई की जयंती Mirabai’s birth anniversary

शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई (Mirabai) जयंती मनाई जाती है। भगवान कृष्ण की अखण्ड भक्तिन मीराबाई ने अपने पूरे जीवन में एक क्षण के लिए भी भगवान कृष्ण का नाम अपनी जुबान से अलग नहीं किया। उन्होंने अपने शरीर का अंत भी कृष्ण की मूर्ति में समाकर कर दिया। उनके भजनों और पदों में भक्ति का अमृत भरा हुआ है।

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