एक थे महात्मा जिन्होंने भारत में स्त्री शिक्षा की शुरुआत की, महात्मा ज्‍योतिबा फुले (Jyotirao Phule)

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ज्‍योतिबा फुले Jyotirao Phule
ज्‍योतिबा फुले (Wikipedia Pic)

जन-जन तक पहुंचने वाली भारतीय शिक्षा के लिए और शिक्षकों के लिए आज सबसे बड़ा दिन है क्योंकि आज महात्मा महात्मा ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule) का आज जन्मदिन है। उससे भी बड़ा दिन है आज महिलाओं के लिए क्योंकि महिला शिक्षा के लिए ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule) ने पहला महिला स्कूल खोला और उनका साथ दिया उनकी जीवनसाथी सावित्रीबाई फुले ने।
यह वही महात्मा है जिनके बारे में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा था की भारतवर्ष में अगर कोई महात्मा हुए है तो वह है ‘महात्मा ज्‍योतिबा फुले’।

ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म – 11अप्रैल 1827 को हुआ था। ज्योतिराव एक भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते है। इन्हें ‘महात्मा फुले’ एवं ‘ज्‍योतिबा फुले’ के नाम से भी जाना जाता है।
ज्‍योतिबा फुले (Jyotirao Phule) समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।
सितम्बर 1873 में ज्‍योतिबा फुले ने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए।
इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं। दलित व स्‍त्रीशिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर क्रन्तिकारी काम किये।

भारतीय महिलाओं के लिए योगदान
ज्‍योतिबा फुले ने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए बहुत काम किया। इसके साथ ही उन्होंने किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला। जिसके कारण उनको पंडित पुरोहितों का घोर विरोध झेलना पड़ा तथा तथा कथित धर्म के रखवालों ने उन्हें धर्म विरोधी भी कहा दिया।
यह स्त्री शिक्षा के लिए देश में पहला विद्यालय था। इसके बाद लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं अपनी पत्नी को शिक्षा देकर सावित्री बाई को इस योग्य बना दिया की वह भी शिक्षा दे सके।
तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की और जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया। इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।

महात्मा और उनकी उपलब्धि
गरीबो और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा (Jyotirao Phule) ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं- तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत।
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी।

इस आर्टिकल में कुछ जानकारी Wikipedia से भी ली गई है.
Edited By Dharm Pal