आज साल का अंतिम दिन है और 2021 का यह साल महिलाओं के लिए कई तरह के बदलाव लेकर आया। यह साल हमें याद रहने वाला है कोरोना महामारी को लेकर, महिलाओं को उनके हक़ में मिली कई तरह की आज़ादी के लिए और महिलाओं को मिले कुछ अधिकारों की वजह से आज सपने पूरे होते दिख रहे है, चलिए आज हम बात करते है महिलाओं को मिले कुछ अधिकारों के बारे में. 2021 में अदालतों ने आठ ऐसे बड़े फैसले लिए, जो आने वाले वक्त में महिलाओं की जिंदगी बदलने में समर्थ रहने वाले है –
1 – महिला आर्मी ऑफिसर को मिला परमानेंट कमीशन –
सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च को अपने फैसले में केंद्र सरकार व आर्मी अथॉरिटी से महिलाओं का हक़ रखते हुए कहा कि वह महिलाओं को शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन दें। इसके लिए ऑर्डर पास करने के लिए दो महीने का समय भी दिया गया। जब इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ तब सुप्रीम कोर्ट ने आर्मी अथॉरिटी को फटकार लगाई। नवंबर को इस विषय पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की दो जज की बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार इस विषय में जल्द निर्णय ले, जिसके बाद परमानेंट कमीशन के लिए आवेदन करने वाली 36 महिला अफसर में से 11 महिला अधिकारियों को शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए चुना गया।
2 – मां का सरनेम इस्तेमाल करने को मिली मंज़ूरी –
अगस्त, 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर बेटे या बेटी की इच्छा है कि वह अपनी मां के नाम से पहचाना जाए तो बच्चे को अपनी मां का सरनेम इस्तेमाल करने का अधिकार है, वह मां का सरनेम भी रख सकता है।
3 – NDA की परीक्षा दी पहली बार महिलाओं ने –
22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने NDA प्रवेश परीक्षा में महिलाओं के शामिल होने की इजाजत दी थी। 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने NDA प्रवेश परीक्षा में महिलाओं के शामिल होने की इजाजत दी थी। इस फैसले को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस SK कौल की अगुवाई वाली बेंच के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि महिलाओं को मई 2022 में NDA परीक्षा में बैठने की इजाजत दी जाए। इस तरह उन्हें परीक्षा के लिए तैयारी करने का समय मिल जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को एक साल टालने से इंकार कर दिया। 14 नवंबर को हुई एनडीए प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए पहली बार में 1,78,000 महिलाओं ने आवेदन किए। इसमें से एक हजार छात्राओं ने परीक्षा क्लियर कर ली।
4 – अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने का मिला अधिकार –
अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का मिला अधिकार हर व्यक्ति को अपनी पसंद के लाइफ पार्टनर के साथ जीवन बिताने का अधिकार है। इस बात पर गौर करते हुए फरवरी, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर जीवनसाथी चुनने के अधिकार पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कपल अपनी मर्जी से शादी कर रहा है, तो उन्हें घरवालों और समाज की मंजूरी की जरूरत नहीं है। अंतर जातीय और अंतर धर्म विवाह को समाज को स्वीकारना होगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल की अगुवाई में बनी बेंच ने इस तरह के मामलों को डील करने के लिए पुलिस के लिए अलग गाइडलाइन तैयार करने पर जोर दिया। संवेदनशील होने की वजह से कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि जहां जरूरी हो वहां कपल्स को सुरक्षा भी दी जानी चाहिए।
5 – यौन उत्पीड़न में बेल के लिए अब अपराधी को राखी नहीं बांधेगी –
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने जुलाई 2020 में यौन उत्पीड़न के मामले में अपराधी को बेल देने के लिए एक बहुत ही अजीबोगरीब कंडीशन तय की। इसमें पीड़िता से आरोपी के हाथ में राखी बांधने को कहा गया था। मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया। इसी के साथ कोर्ट से कहा गया कि वह बेल की कंडीशन में ऐसी संवेदनहीन फैसले नहीं ले सकते, खासकर जब मामला यौन उत्पीड़न से जुड़ा हो।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और एस रवींद्र भट ने एडवोकेट अपर्णा भट्ट की याचिका पर सुनवाई की थी। इसी के साथ बेल की कंडीशन से जेंडर स्टीरियोटाइप हटाते हुए विशेष गाइडलाइन जारी करने का आदेश दिया।
6 – स्किन-टु-स्किन कॉन्टैक्ट न हो तब भी यौन शौषण –
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पीड़िता से स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट न होने पर अपराध को यौन उत्पीड़न में शामिल नहीं किया जा रहा था। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने पॉक्सो एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि अगर स्किन-टु-स्किन कॉन्टैक्ट नहीं हुआ हो तो उसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जाएगा।
इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और बेला त्रिवेदी की बेंच ने खारिज करते हुए कहा कि अदालतें अपने मुताबिक कानून की व्याख्या न करें। इससे कानून का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए यह कानून लागू किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह साफ किया कि भले ही पीड़िता को अपराधी ने सीधे नहीं छुआ है और भद्दे इशारे कर रहा है, तब भी यौन शोषण का मामला दर्ज किया जाएगा।
7 – पुरुष और घर संभालने वाली महिला का काम बराबर –
जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि घर संभालने वाली महिला का काम किसी भी कीमत पर घर से बाहर जाकर कमाने वाले पुरुष से कम अहम नहीं है। अप्रैल 2014 में एक सड़क दुर्घटना में मरने वाले दंपती के मुआवजे के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जज की बेंच ने मुआवजा राशि बढ़ाने का फैसला दिया।
जस्टिस एन वी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने हादसे में जान गवाने वाले व्यक्ति के पिता को दी जाने वाली मुआवजा राशि को तीन गुना बढ़ाने का फैसला दिया। इंश्योरेंस कंपनी ने मरने वाले युवक की आय में ब्याज जोड़कर मुआवजा देने का निर्णय लिया था। मरने वाले दंपती में पुरुष शिक्षक था, जबकि महिला हाउसवाइफ थी। ऐसे में उनकी आय नहीं जोड़ी गई थी। फैसले के दौरान कोर्ट ने कहा कि महिला का काम किसी भी तरह के पुरुष से कम नहीं आंका जा सकता।
8 – महिला के शरीर पर सेक्शुअल एक्ट करना भी रेप –
केरल हाई कोर्ट ने अगस्त 2021 को आईपीसी की धारा 375 (रेप) के दायरे को बढ़ाने की बात कही। एक नाबालिग लड़की के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस जियाद रहमान ने कहा कि महिला के शरीर पर सेक्शुअल एक्ट करना भी रेप माना जाएगा।