शौहर ज्यादती करे तो बीवी रद्द कराएगी निकाह, दोबारा निकाह के लिए हलाला जरूरी नहीं…

बहुविवाह और हलाला से मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। याचिकाओं में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट की धारा-2 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।

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हलाला
शौहर ज्यादती करे तो बीवी रद्द कराएगी निकाह, दोबारा निकाह के लिए हलाला जरूरी नहीं...

सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम बहुविवाह और हलाला पर बैन लगाने की मांग करने वाली सात याचिकाएं दाखिल हुई हैं। इनमें से ज्यादातर याचिकाएं उन मुस्लिम महिलाओं की है, जिनके पति ने दूसरी शादी कर ली या जिन्हें हलाला से गुजरना पड़ा। इन याचिकाओं पर 19 अक्टूबर 2022 को सुनवाई होनी है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बहुविवाह और हलाला से मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। याचिकाओं में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट की धारा-2 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।

आइए मुस्लिम महिलाओं के इस दर्द से आपको तीन अलग-अलग कहानियों के जरिए रूबरू कराते हैं।

केस 1- देवर के साथ हलाला करने के लिए मारपीट तक हुई

सुप्रीम कोर्ट में बहुविवाह को चुनौती देने वाली अपीलकर्ता शबनम रानी भी हैं। शबनम बताती हैं, ‘मेरे शौहर ने अचानक दूसरी शादी का फैसला कर लिया। मैंने ऐतराज किया तो मुझे तलाक दे दिया। शौहर ने कहा कि मैं तुम्हें तलाक दे चुका हूं। तुम दोबारा तभी आ सकती हो, जब हलाला करोगी।’

पति और सास-ससुर ने शबनम पर देवर के साथ हलाला करने का दबाव बनाया। उनके इनकार करने पर भी मारपीट भी की गई। शबनम का आरोप है कि उन पर एसिड अटैक भी हुआ। उन्होंने लोगों की मदद से किसी तरह मुकदमा दर्ज कराया।

केस नं 2- पहली शादी छिपाकर समीना से की शादी, फोन पर तलाक देकर भागा

शबनम 2017 में समीना बेगम के संपर्क में आईं और उन्हीं की मदद से उन्होंने बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ के खिलाफ याचिका दायर की। समीना की कहानी शबनम से कम दर्दनाक नहीं हैं। समीना की दो शादियां हुईं और दोनों ही बार पति ने तलाक दे दिया।

पहले तलाक के बाद समीना ने दूसरी शादी की। जब वह प्रेग्नेंट हुईं, तो उन्हें पता चला कि उनका पति तलाकशुदा नहीं, शादीशुदा है। पहली पत्नी को तलाक दिए बगैर ही उनके साथ निकाह किया है। बच्चे के जन्म समय पति भाग गया और फिर फोन पर तलाक दे दिया। अब समीना बहुविवाह और हलाला के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं।

केस नं 3- नौकरी छुड़वाने के लिए मारपीट तक हुई, पति ने की दूसरी शादी

साउथ दिल्ली में रहने वाली नफीसा खान को भी बहुविवाह झेलना पड़ा। उनकी शादी 2008 में हुई। उनके शौहर मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते थे और वह खुद वॉयस ओवर आर्टिस्ट हैं। निकाह के बाद शौहर और ससुरालवालों ने उनसे नौकरी छोड़ने को कहा।

इसे लेकर कहासुनी और मारपीट तक होने लगी। उन्हें अपना करियर छोड़ना पड़ा। दो बच्चे होने के बाद भी घरेलू हिंसा का सिलसिला जारी रहा। आखिर में उन्होंने ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया।

2018 में पता चला कि उनके शौहर ने दूसरी शादी कर ली। हालांकि, कुछ समय बाद पति का दूसरा तलाक भी हो गया। नफीसा भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

बहुविवाह और हलाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में क्या कहा गया है, उससे पहले जान लेते हैं कि महिला किन स्थितियों में अपने शौहर से तलाक की हकदार है।

आइए-सबसे पहले जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका क्या है और उसके मायने क्या हैं।

हलाला के खिलाफ सात याचिकाएं दायर

सुप्रीम कोर्ट में बहुविवाह और हलाला के खिलाफ शबनम को मिलाकर 7 याचिकाएं दायर हैं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस मामले में NHRC, राष्ट्रीय महिला आयोग और नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटीज को भी नोटिस जारी किया है।

बहुविवाह और हलाला के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की दलील

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट 1937 की जिस धारा-2 पर सवाल उठ रहे हैं, उसी के तहत बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को मान्यता दी जाती है। तीन तलाक भी इसी में था।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को रद्द करने के बाद कहा था कि वह ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह के संवैधानिक पहलू को परखेगा। इसलिए अगर कोई अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो हलाला करना जरूरी नहीं है, क्योंकि हिंदुस्तान में तीन तलाक को खत्म कर दिया गया है। वैसे भी ‘तलाक-तलाक-तलाक’ तीन शब्दों को एक झटके में बोलकर तलाक देने जैसी कोई चीज नहीं होती है।

इसी मामले के एक और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि उन्होंने ‘मुताह’ और ‘मिस्यार निकाह’ को भी चुनौती दी है। साथ ही, शरियत कोर्ट चलाने वालों के ख़िलाफ़ एक्शन लेने की गुहार लगाई गई है।

आइए, पहले जान लेते हैं कि बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ के अलावा और क्या रिवाज हैं।

एक तरफ इस्लाम 4 शादियों को शर्तों के साथ इजाजत देता है तो दूसरी तरफ बोझ बन चुकी शादी में मुस्लिम महिलाओं को तलाक लेने-देने का हक भी देता है।

आइए जानते हैं कौन सा इस्लामिक कानून (शरियत) महिलाओं को निकाह में रहने या न रहने का हक देता है।

मिस्यार और मुताह पर एक्सपर्ट की अलग-अलग राय

टोरंटो विश्वविद्यालय में धर्म के असिस्टेंट प्रोफेसर करेन रफल के अनुसार, सुन्नी मुताह को नकारते हैं, लेकिन मिस्यार विवाह को स्वीकारते हैं। मिस्यार दुनिया के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय है।
एमोरी यूनिवर्सिटी के ऑक्सफोर्ड कॉलेज में धर्म के असिस्टेंट प्रोफेसर फ्लोरिडा पोल के अनुसार, मिस्यार एक विवादास्पद मुद्दा है, क्योंकि कई लोग सम्बन्ध बनाने के लिए शादी करते हैं।
अल-अल्बानी जैसे इस्लामी विद्वानों का दावा है कि मिस्यार कानूनी हो सकता है लेकिन नैतिक नहीं। अल-अल्बानी कहते हैं मिस्यार विवाह से सामाजिक समस्या पैदा हो सकती हैं। मिस्यार में पैदा होने वाले बच्चों के पिता की मौजूदगी नहीं रहती है और केवल मां की परवरिश कठिनाइयां पैदा कर सकती है। कुछ उलेमा के जारी किए फतवों में मिस्यार को ज़िनाखोरी (बलात्कार) रोकने के लिए वैध करार दिया गया है।

हलाला के पीछे क्या तर्क देते हैं एक्सपर्ट

सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट आरफा खानम कहती हैं कि कई बार शौहर तैश में आकर तलाक दे देता है। गलती का अहसास होने पर अगर वह फिर से अपनी बीवी के साथ रिश्ता कायम करना चाहता है। इसके लिए ही हलाला का प्रावधान है।

महिला को शौहर के साथ दोबारा रहने के लिए ‘निकाह हलाला’ से गुजरना होगा। दूसरे आदमी से निकाह करना होगा और फिर उसे तलाक देकर ही पहले पति से दोबारा निकाह किया जा सकता है।

इस्लाम के जानकारों का कहना है कि यह प्रक्रिया इसलिए बनाई गई थी, ताकि कोई यूं ही तलाक देकर व्यवस्था का मज़ाक़ न बनाए। लेकिन इसका दुरुपयोग होने लगा है।

चार शादियों पर एक्सपर्ट की राय भी जान लेते हैं

आरफा कहती हैं कि शरिया और कुरान के मुताबिक ‘सुरह’ ‘अलनिसा’ (पंक्तियां) में कहा गया है कि एक से ज्यादा शादी करने पर सभी पत्नियों को बराबरी का दर्जा नहीं दे सकते तो आप शादी नहीं कर सकते। जब कोई मुस्लिम पुरुष दूसरी या तीसरी शादी करता है तो पहली बीवी से इजाजत लेना जरूरी है।

इन शादियों में कंडीशन भी लागू होती हैं। जैसे किसी बेसहारा या विधवा से शादी करना। समाज में ऐसी औरतों को बुरी नज़र से बचाने के लिए इसकी इजाजत दी गई। हालांकि इसके दुरुपयोग की आशंका रहती है।

याचिकाकर्ताओं की इस मांग पर कि महिला की बिना लिखित सहमति के मुस्लिम पुरुषों को एक दूसरी महिला से निकाह करने से रोका जाए। इस मसले पर 19 अक्टूबर 2022 को सुनवाई होनी है। मामला के कोर्ट में पहुंचने के बाद मुस्लिमों में बहुविवाह की प्रथा पर एक बार फिर से चर्चा होने लगी है। अब सबकी निगाह कोर्ट पर है।