”हिजाब बैन कई महिलाओं को शिक्षा से वंचित रख सकता है” चुन्नी पहनना स्वीकार्य तो Hijab क्यों नहीं? – SC

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हिजाब (Hijab) पहनना इस्लाम में एक ज़रूरी प्रथा हो भी सकती है और नहीं भी. पर क्या किसी सरकारी संस्थान में धार्मिक परंपराएं मानी जानी चाहिए? संविधान की प्रस्तावना तो कहती है कि भारत एक सेक्युलर देश है.

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Hijab
'क्या कोई हिंदू इंडिया गेट पर आकर हवन कर सकता है?' जाने क्या है Hijab का पूरा मामला ?

Hijab: सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक के हिजाब (Hijab) विवाद पर सुनवाई चल रही है. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. 5 सितंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हर इंसान के पास अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या धर्म के पालन का अधिकार ऐसे शिक्षण संस्थानों में भी लागू होगा जहां यूनिफॉर्म चलते हैं?

इससे पहले, 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने क्लासरूम में हिजाब (Hijab) पहनने की मांग को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं.

सुनवाई के दौरान बेंच ने सवाल किया, During the hearing, the bench questioned,

lallantop की रिपोर्ट के अनुसार “कोर्ट रूम में भी ड्रेस कोड होता है. क्या कोई महिला कोर्ट रूम में जीन्स पहनकर कह सकती है कि ये उसकी पसंद है? गोल्फ कोर्स में भी ड्रेस कोड होता है. कई रेस्त्रां में फॉर्मल ड्रेस कोड होता है, कुछ में कैजुअल. ऐसे में क्या कोई व्यक्ति कह सकता है कि मैं ड्रेस कोड का पालन नहीं करूंगा लेकिन फिर भी मेरे पास वहां (उस जगह) जाने का अधिकार है?”

हिजाब बैन कई महिलाओं को शिक्षा से वंचित रख सकता है वाले तर्क पर कोर्ट ने कहा,

“राज्य ये नहीं कह रहा कि वो किसी भी अधिकार से आपको इनकार कर रहा है. वो बस आपको उस यूनिफॉर्म में आने के लिए कह रहा है जो स्टूडेंट्स के लिए तय किया गया है.”

चुन्नी पहनना स्वीकार्य तो हिजाब क्यों नहीं? If wearing chunni is acceptable then why not hijab?

याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट संजय हेगड़े अदालत में पेश हुए. उन्होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट किसी को भी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर शिक्षा से वंचित रखने से रोकता है. उन्होंने ये भी कहा कि यूनिफॉर्म कैसा होना चाहिए ये तय करने का अधिकार सरकार के पास नहीं है. अगर कोई व्यक्ति यूनिफॉर्म के साथ कुछ एक्स्ट्रा (Hijab) पहनता है तो वो यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं है.

वकील ने चुन्नी और हिजाब (Hijab) को स्कार्फ का फॉर्म बताकर समानता स्थापित करने की कोशिश की और कहा कि चुन्नी यूनिफॉर्म का हिस्सा रह चुकी है. जबाव में कोर्ट ने टोकते हुए कहा कि आप हिजाब और चुन्नी की तुलना नहीं कर सकते. दोनों में बहुत फर्क है. हिजाब को चुन्नी कहना गलत है.

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हिजाब (Hijab) पहनना इस्लाम में एक ज़रूरी प्रथा हो भी सकती है और नहीं भी. पर क्या किसी सरकारी संस्थान में धार्मिक परंपराएं मानी जानी चाहिए? संविधान की प्रस्तावना तो कहती है कि भारत एक सेक्युलर देश है.

पगड़ी का धर्म से लेना देना नहीं है : कोर्ट Turban has nothing to do with religion: Court

याचिकर्ताओं के वकील ने कहा कि उन्होंने कोर्ट में जजों को तिलक लगाए देखा है. कोर्ट में एक जज की पेंटिंग देखी है जिसमें उन्होंने पगड़ी पहनी थी.

इसके जवाब (Hijab) में जस्टिस गुप्ता ने कहा कि पगड़ी पहनने की प्रथा राजशाही के वक्त थी, उनके दादा भी कोर्ट में प्रैक्टिस के दौरान पगड़ी पहनते थे. उन्होंने कहा कि पगड़ी को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखने वाले वकील संजय हेगड़े ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला समाज के एक बड़े वर्ग की शिक्षा पर असर डालेगा.

कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 7 सितंबर तय की है.

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