सुशासन बाबू का बिहार अभी बचपन के लिए श्राप बना हुआ है क्योंकि वहां एक दिमागी बुखार ने लगभग 146 बच्चों की जान ले ली है जिसका नाम चमकी बुखार (Chamki Bukhar) है।
हालाँकि ये राजनीति के बड़े खिलाडियों के लिए बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि इसमें कोई जाती धर्म या मंदिर मस्जिद की बात नहीं हो रही है तो राजनीति के शीर्ष पर बैठे लोगों के लिए ये कोई मुद्दा भी नहीं है। अभी तक न तो इस बीमारी का पता चला है और न ही इस बीमारी के कारणों का बस ले दे के लीची नमक फल के मथे सारा दोष माध चुके है।
डॉक्टरों की बात माने तो जो बच्चे मर रहे हैं वह कुपोषण के शिकार हैं तथा गरीब हैं, गांवों में रहने वाले हैं। इस बात का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि चमकी बुखार (Chamki Bukhar) से मरने वालों में न तो कोई शहरी बच्चा है और न ही उनका बच्चा जिनकी गिनती अमीरी रेखा से ऊपर है। अगर बच्चे गरीब न होते तो भी शायद सरकारें इस बीमारी पर ध्यान दे लेती परन्तु बिहार के मुख्यमंत्री को हॉस्पिटल पहुँचने में 17 दिन लग गए।
हालाँकि इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई गई है। और कोर्ट याचिका पर सुनवाई को तैयार है परन्तु सोमवार को ही इस मामले में सुनवाई होगी।
इस याचिका में कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि वह एईएस से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए तत्काल मेडिकल एक्सपर्ट्स की एक टीम गठित करने का निर्देश दे। बच्चों के इलाज के लिए 100 मोबाइल आईसीयू बनाया जाए तथा डॉक्टरों की संख्या बढ़ाई जाए।
इसी याचिका में बिहार सरकार को विफल भी बताया गया क्योंकि चमकी बुखार (Chamki Bukhar) से मरने वाले बच्चों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। बच्चों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है यह तय करने की मांग की गई है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट की माने तो पीआईएल में कहा गया है कि बिहार सरकार बच्चों के उचित इलाज का प्रबंध करे और पीड़ित परिवार को मुआवजा दे।
अब सवाल ये उठता है की जो माताएं अपने बच्चे खो रही है क्या उनका गरीब होना ही सबसे बड़ा गुनाह बन गया है ? आखिर कब हमारी सरकारें जागेगी और इस तरह की महामारी से निपटने की तैयारी करेगी या फिर विदेशी रिसर्च के भरोसे ही हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे।